भारत के साथ डबल गेम खेलने की कोशिश में है तालिबान, भुना रहा कश्मीर का मुद्दा


तालिबान 


अफगानिस्तान में बरसों तक खून बहाने वाला आतंकी संगठन तालिबान, अशरफ गनी सरकार से बातचीत से पहले खुद को भारत की नजरों में अच्छा दिखाने की कोशिश कर रहा है। वह भारत के साथ डबल गेम खेलना चाहता है और कश्मीर मुद्दे को भुनाने की फिराक में है। भारतीय रक्षा विशेषज्ञों ने यह आशंका तब जताई है, जब हाल ही में तालिबान ने कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला बताते हुए उसके खिलाफ छेड़े गए किसी भी तरह के जेहाद को समर्थन देने से इनकार किया था। विशेषज्ञों ने तालिबान के इस बयान को अफगान वार्ता से पहले की पैंतरेबाजी करार दिया है।


राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य तिलक देवेश्वर के मुताबिक, तालिबान अच्छे और बुरे पुलिसवाले का खेल रचा रहा है। तालिबान, अफगान वार्ता से पहले गनी सरकार को मिल रहे समर्थन की जडे़ं काटना चाहता है, ताकि गनी सरकार का मनोबल टूट जाए और भारत से बातचीत के दरवाजे खुल जाए, जो अभी तक तालिबान से दूरी बनाए हुए है। वहीं, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर फेलो सुशांत सरीन ने कहा, तालिबान अरसे से अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ डबल गेम खेलता रहा है और अब कुछ ऐसा ही वह भारत के साथ करने की कोशिश में है। वह भारत के सामने खुद को अफगानिस्तान का असली चेहरे की तरह पेश करना चाहता है, ताकि उससे बातचीत हो तो वह भारत के मामलों में दखल नहीं देने का भरोसा दे सके।
...तो पाकिस्तान के भी पूरे मसले में शामिल होने की आशंका
वहीं, सोसाइटी ऑफ पॉलिसी स्टडीज के निदेशक सी उदय भास्कर के मुताबिक, तालिबान भारत के साथ बात करना चाहेगा तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। ऐसा लगता है कि उसका एक धड़ा उदारवादी रुख अपना रहा है। यह धड़ा एक तरह का अस्थाई राजनीतिक जगह बनाने की फिराक में है, जिससे भारत से बातचीत शुरू हो सके। तालिबान कश्मीर पर भारत की चिंता को भुनाने की कोशिश में है। इससे पाकिस्तान भी इस पूरे मसले में शामिल हो जाएगा। मुझे डर है कि तालिबान आतंक का पर्याय रहा है, इसलिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।



अशरफ गनी


तालिबान से बात करेंगे तो अपने दोस्त को खो देंगे


सरीन के मुताबिक तालिबान से बातचीत का मतलब है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से बातचीत करना। वह पाकिस्तान का ही दूसरा रूप है। अगर आप तालिबान से बात करेंगे तो आप अपने दोस्त यानी गनी सरकार को खो देंगे। वहीं, देवेश्वर ने कहा, तालिबान भारत से बातचीत बढ़ाकर अफगानिस्तान की अशरफ गनी सरकार को नीचा दिखाना चाहता है। अमेरिका के विशेष राजदूत जालमे खलिजाद ने हाल ही में भारत से अनुरोध किया था कि वह तालिबान से सीधे बात करे। अगर वाकई तालिबान बदल गया है, तो इसे अपने रवैये और गतिविधियों से दर्शाना होगा।


अल कायदा और आईएस से तालिबान ने सभी नाते तोड़ लिए, यह भ्रम


सरीन के मुताबिक, यह मानना एक भ्रम होगा कि तालिबान ने अल कायदा और इस्लामिक स्टेट के साथ अपने सभी संबंध तोड़ लिए हैं। उस पर कोई भी भरोसा करना जल्दबाजी होगी। यह एक ऐसा गुट है, जो बीते 25 साल से स्कूलों, अस्पतालों, महिलाओं और बच्चों का खून बहाने का गुनहगार है। खासतौर पर इसने अफगान लोगों को निशाना बनाया है। इस पर यकीन तभी हो सकेगा, जब तालिबान आतंकी संगठन जैसा बर्ताव करना बंद कर दे। मासूमों का खून बहाना रोक दे।