स्पैनिश फ्लू के दूसरे दौर की अब क्यों हो रही इतनी चर्चा, क्या भारी पड़ेगी लॉकडाउन 4.0 में मिली छूट?


1918 में स्पैनिश फ्लू से पीड़ित एक मां, पास में खड़ी बिलखती बच्ची


कार्ल मार्क्स ने कहा था इतिहास स्वयं को दोहराता है, पहले एक त्रासदी के रूप में और दूसरा एक मजाक के रूप में। 
इतिहास बेशक खुद को दोहरा रहा है, लेकिन दूसरी बार भी दूर-दूर तक सिर्फ त्रासदी ही नजर आ रही है। इस त्रासदी का कारण है कोरोना वायरस जिसने दुनियाभर में अबतक 50 लाख लोगों को अपना शिकार बना लिया है। बीते 100 साल में कोरोना वायरस से पहले फैले स्पैनिश फ्लू ने ही इतनी जनहानि की थी। स्पैनिश फ्लू जिसे 'मदर ऑफ ऑल पैंडेमिक्स' यानी सबसे बड़ी महामारी भी कहा जाता है। इसकी वजह से महज दो साल (1918-1920) में 2 करोड़ से 5 करोड़ के बीच लोगों की मौत हो गई थी।


अगर दोनों महामारियों की तुलना करें, तो कोरोनावायरस जहां अपने पहले चरण में ही नजर आ रहा है है तो स्पैनिश फ्लू एक ही साल में तीन चरणों में लोगों की जान लेता रहा। स्पैनिश फ्लू का दूसरा और तीसरा दौर पहले के मुकाबले ज्यादा घातक रहा। अगर ऐसा ही कोरोना वायरस के साथ भी हुआ तो हमें उन गलतियों को दोहराने से बचना चाहिए, जो स्पैनिश फ्लू के वक्त दुनिया ने की थी।


पलटकर आती है महामारी



स्पैनिश फ्लू के शिकार हुए लोग


सौ साल पहले, स्पेनिश फ्लू ने साबित किया कि वैश्विक महामारी नाम का दुश्मन एक बार में खत्म नहीं होता, बल्कि पलटकर आता है। 1918 के बसंत काल में शुरू हुई इस महामारी को देखकर लग रहा था कि सितंबर तक प्रकोप खत्म हो जाएगा, लेकिन तभी दूसरा और सबसे खतरनाक दौर शुरू हुआ। पहले दौर के बाद तीन महीने तक बहुत कम मामले सामने आए, लेकिन फिर अचानक इनमें तेजी आ गई और कई जानें गईं।


स्पैनिश फ्लू: यूके में संक्रमण के 10 माह (1918-19)


पहला दौर    1000 संक्रमितों में से 05 की मौत
दूसरा दौर    1000 संक्रमितों में से 25 की मौत
तीसरा दौर   1000 संक्रमितों में से 12 की मौत



आर्म्ड फोर्सेज इंस्टीट्यूट ऑफ पैथॉलॉजी, यूएस


तब भारत में हुई थी करीब 1 करोड़ 70 लाख लोगों की मौत



स्पैनिश फ्लू में मुंबई भारत का सर्वाधिक प्रभावित शहर था


भारत में स्पैनिश फ्लू से मरने वालों की तादाद आबादी की 5.2 फीसदी यानी करीब 1.7 करोड़ लोग थे। 1918 के मई-जून में समुद्री रास्ते से बंबई (आज के मुंबई) में दस्तक दी थी। अगले कुछ माह में यह महामारी रेलवे के जरिए देश के दूसरे शहरों में भी फैल गई। सितंबर में आए इसके दूसरे दौर ने तांडव मचाया था। दुनियाभर के जिन शहरों ने लोगों के इकट्ठे होने, थिएटर खोलने, स्कूलों और धार्मिक जगहों के खुलने पर रोक लगा दी थी वहां मौतों का आंकड़ा काफी कम था। उस वक्त प्रथम विश्व युद्ध जारी था। तब भीड़भाड़ वाले सैनिकों के ट्रांसपोर्ट और जंगी सामान बनाने वाली फैक्ट्रियों और बसों और ट्रेनों के जरिए यह बीमारी जंगल की आग की तरह फैल गई। ब्रिटिश सम्राज्य के रॉयल सोसाइटी ऑफ मेडिसिन को सलाह दी गई कि अगर कोई बीमार हैं तो घर पर ही रहें और ज्यादा भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें, लेकिन ब्रिटिश हुकुमत ने युद्ध को जारी रखना उचित समझा।