पेइचिंग: चीन के ऊपर आरोप लगते रहे हैं कि उसने न सिर्फ अपने देश में कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए कदम उठाए बल्कि बाकी दुनिया को भी देर से जानकारी दी। चीन इन आरोपों का खंडन करता रहा लेकिन अब चीन की एक और चालाकी सामने आई है जिससे उसके सारे दावों पर सवाल उठता है। दरअसल, चीन ने कोरोना वायरस के खिलाफ सबसे कारगर मानी जा रही दवा को तभी पेटेंट कराने की कोशिश की थी जब वहां सबसे पहले इंसानों के बीच इसके फैलने की पुष्टि हुई थी।
वुहान लैब ने दी अर्जी: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 20 जनवरी को इस बात की पुष्टि की थी कि यह वायरस इंसानों से इंसानों में फैल सकता है। हालांकि, लीक हुए कुछ दस्तावेजों से यह साबित होता है कि अधिकारियों को यह पता चल चुका था कि यह एक महामारी है लेकिन लोगों को चेतावनी 6 दिन बाद दी गई। यही नहीं इबोला से लड़ने के लिए अमेरिका की बनाई हुई Remdesivir को 21 जनवरी को ही पेटेंट कराने की अर्जी दे दी गई। ये अर्जी वुहान की वायरॉलजी लैब और मिलिट्री मेडिसिन इंस्टिट्यूट ने बनाई थी।
चीन के खिलाफ जांच की मांग: फॉरन अफेयर्स सिलेक्ट कमिटी के चेयरमैन टॉम टुगनढट ने चीन के खिलाफ जांच की मांग की। उन्होंने कहा कि इस बीमारी और इससे निपटने के बारे में हमें बहुत सी बातें नहीं पता हैं। हमें इससे सीख लेने की जरूरत है ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय भविष्य में बेहतर तरीके से रिस्पॉन्स दे सके। चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता इस बात का आरोप झेल रहे हैं कि उन्होंने डेटा छिपाया और पब्लिक हेल्थ टीमों को जांच करने से रोका, महामारी की जानकारी देने वाले डॉक्टरों को चुप करा दिया और इंसानों के बीच इसके फैलने की बात भी छिपाई।
इबोला के लिए बनी थी: Remdesivir दवा को इबोला के ड्रग के रूप में विकसित किया गया था लेकिन समझा जाता है कि इससे और भी कई तरह के वायरस मर सकते हैं। अमेरिका के वाशिंगटन राज्य में कोरोना से जंग जीतने वाली एक महिला ने अपना निजी अनुभव शेयर करते हुए बताया था कि दवा remdesivir की मदद से उनके पति कोरोना से ठीक हो गए थे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ऐलान किया था कि Remdesivir एक ऐसी दवा है जिससे कोरोना के खात्मे की संभावना देखी जा रही है।
(Source: DailyMailUK)