कैंसर थेरेपी विकसित करने वाले अमेरिकी और जापानी वैज्ञानिकों को चिकित्सा का नोबेल


स्टॉकहोम, पीटीआइ। कैंसर के उपचार में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले अमेरिका के जेम्स एलिसन और जापान के तासुकु होंजो को इस साल के चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है। दोनों ने यह खोज की थी कि प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) किस तरह कैंसर से मुकाबला कर सकता है। बीती सदी के अंतिम दशक में वैज्ञानिकों की इस खोज से त्वचा कैंसर के सबसे घातक प्रकार मेलेनोमा और फेफड़े समेत कई तरह के कैंसर के लिए नए और प्रभावी इलाज के विकास की राह खुली, पहले इनका उपचार बेहद मुश्किल था।


स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट में सोमवार को नोबेल समिति ने पुरस्कार की घोषणा करते हुए कहा, 'दोनों पुरस्कार विजेताओं की मौलिक खोज कैंसर के खिलाफ हमारी लड़ाई में आधारशिला बनी।' इस पुरस्कार के तहत दस लाख डॉलर (7.28 करोड़ रुपये) नकद और प्रतीक चिह्न दिए जाएंगे। एलिसन और होंजो ने यह खोज निकाला था कि रोगी की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली शीघ्रता के साथ कैंसर से मुकाबला कर सकती है। इस खोज से उन प्रोटीन को साधने के लिए उपचार विकसित किए गए जिनकी उत्पत्ति कुछ इम्यून सिस्टम सेल्स द्वारा होती है। ये प्रोटीन कैंसर कोशिकाओं से बचाव में शरीर की स्वाभाविक प्रतिरक्षा में बाधक का काम करते हैं।


टोक्यो में होंजो ने कहा, 'मैं नोबेल पाकर सम्मानित महसूस कर रहा हूं लेकिन अभी तक मेरा काम पूरा नहीं हुआ है। मैं अपना शोध करता रहूंगा।' जबकि एलिसन ने कहा, 'पुरस्कार पाकर अभिभूत हूं। मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि मेरा शोध कोई दिशा देगा।


'एलिसन ने की थी सीटीएलए- 4 प्रोटीन की पहचान
अमेरिका की टेक्सास यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर 70 वर्षीय एलिसन ने साल 1995 में सीटीएलए-4 नामक प्रोटीन की पहचान की थी। उन्होंने पाया कि अगर इस प्रोटीन को बाधित कर दिया जाए तो इम्यून सेल्स या टी सेल्स को ट्यूमर पर हमले के लिए प्रेरित किया जा सकता है।


होंजो ने की थी पीडी-1 प्रोटीन की पहचान
जापान की क्योटो यूनिवर्सिटी के 76 वर्षीय प्रोफेसर होंजो ने 1984 में अलग खोज की थी। उन्होंने पीडी-1 नामक एक अन्य प्रोटीन की खोज की थी। उन्होंने पाया था कि यह भी प्रतिरक्षा प्रणाली के बाधक के तौर पर काम करता है।