कोरोना के जाने के बाद दुनिया
कोरोना वायरस महामारी ने पूरी दुनिया में अपना कोहराम मचाया हुआ है और इस बीमारी के खत्म होने का कोई जरिया अभी तक नहीं दिख रहा है। फिलहाल कोरोना से होने वाले आर्थिक और गैर आर्थिक नुकसान का खामियाजा अभी नहीं पता चलेगा लेकिन कोविड-19 खत्म होने के बाद दुनिया कैसे बदल जाएगी, ये समझते हैं...
किस तरह के शासन की जरूरत है?
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए लोकतांत्रिक देशों ने या सत्तावादी देशों में से किसने अच्छा प्रदर्शन किया, यह एक बहस का मुद्दा हो सकता है लेकिन सवाल यह है कि किस तरह के शासन की जरूरत है। दक्षिण कोरिया और ताइवान को अपने देशों में कोरोना वायरस को रोकने में सफलता मिली है।
इन दोनों देशों ने कोरोना से लड़ने के लिए अलग अलग माध्यमों का इस्तेमाल ही नहीं किया बल्कि देश की जनता का भरोसा भी जीता है। वहीं चीन की बात की जाए तो चीन काफी शक्तिशाली देश है लेकिन चीन ने कोरोना पर जीत हासिल करने के लिए जनता का भरोसा पाने में संदेह पैदा कर दिया है।
कोरोना वायरस के खत्म होने के बाद एक ऐसे देश या शासन की जरूरत है जो किसी भी संकट के दौरान अपने देश की जनता का भरोसा बनाए रखें और जनता को यह समझाने में कामयाब हो जाए कि उनका देश संकट से लड़ने के लिए अच्छा काम कर रहा है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य सुनिश्चितता
कोरोना महामारी से सारे देशों को एक संदेश मिला है कि किसी भी देश के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को तैयार रखना है और यह हर देश के लिए प्राथमिकता होनी चाहिए। कोरोना के संक्रमण के दौरान देखा गया कि दुनिया के अमीर देशों के पास वैक्सीन का भंडार नहीं था।
कई अमीर देश ऐसे थे जिनके पास पेरासिटामोल, मास्क और सबसे जरूरी दवाई हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन नहीं है। ये ऐसे देश हैं जो खाने और पेट्रोलियम पदार्थ के भंडार को भरकर रखते हैं लेकिन इन देशों के पास स्वास्थ्य संबंधी जरूरी दवाई नहीं थी।
स्थानीय वैल्यू चेन का आगे लाना है
कोविड-19 बीमारी ने पूरी दुनिया को एक संदेश दिया है कि वैश्विक वैल्यू चेन की क्षमता काफी कमजोर है और ऐसे संकट में अविश्वसनीय है। वैल्यू चेन पर दोबारा काम करना होगा ताकि इसे ज्यादा प्रभावशाली बनाया जा सके।
इसके अलावा वैश्विक वैल्यू चेन भूरणनीति नहीं बल्कि किसी देश के आर्थिक मोर्चे के आधार तैयार की जानी चाहिए। स्थानीय वैल्यू चेन को बढ़ावा देकर वस्तु और सेवा के उत्पादन को सुनिश्चित कर सकते हैं।
गरीबों के लिए सामाजिक सुरक्षा
कोरोना वायरस का आर्थिक प्रभाव काफी बड़ा और विनाशकारी हो सकता है। कोरोना संकट से पहले भी कई देशों में कई समुदाय गैर बराबरी का सामना कर रहे हैं। कोरोना वायरस ने गैर बराबरी का एक नमुना हमारे सामने पेश किया है।
अमेरिका जैसे अमीर देश में कोरोना वायरस ने अश्वेत लोगों को अनुपातहीन तौर पर संक्रमित किया है, ठीक वैसे ही हमारे देश में कोरोना की वजह से सबसे ज्यादा परेशानी प्रवासी मजदूरों को हुई। कोरोना का असर सामाजिक तौर पर भी देखने को मिल रहा है।
कोरोना के जाने के बाद दुनिया को चाहिए कि अपने देश के गरीबों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करें। गरीबों को खाने, रहने और पढ़ाई का अधिकार के साथ साथ स्वास्थ्य का अधिकार भी देना होगा। कोरोना वायरस देश के गरीबों और कमजोर वर्गों पर ज्यादा असरदार रहा है, इसलिए इन्हें सामाजिक सुरक्षा देनी चाहिए।
भारत की कोविड-19 कूटनीति
भारत ने कोरोना से लड़ने में जल्द कदम उठाएं, दूसरे देशों की तुलना में देश ने लॉकडाउन का एलान काफी पहले कर दिया था। अपने पड़ोसी देशों और प्रमुख दोस्तों जैसे अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, ब्राजील और इजराइल में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और पेरासिटामोल देना एक प्रभावशाली कदम था।
भारत को भविष्य के लिए ज्यादा पेरासिटामोल के उत्पादन पर जोर देना चाहिए। वैश्विक वैक्सीन का 70 फीसदी और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का उत्पादन से देश ने सार्वजनिक स्वास्थ्य सुनिश्चितता में बढ़िया भुमिका निभाई है।
दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों को दोबारा जांचना होगा
दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों योजना को लंबे अवधि के बाद समझौते और 2030 की डेडलाइन के साथ तैयार किया गया है। दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों का उद्देश्य सभी उम्र के लोगों को स्वस्थ जिंदगी देना है। कोरोना के खत्म होने की अवधि से अवगत ना होने के कारण इस लक्ष्य की प्राप्ति पर थोड़ संदेह है।
भारत जैसे देश में कोरोना का अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ने वाला है। जिसकी वजह से गरीबी खत्म करने और भुखमरी को शून्य करने जैसे लक्ष्यों पर भी बुरा असर पड़ सकता है।
भू-राजनीति का मुद्दे पर फोकस
हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां देशों का बंटवारा भू-भाग के आधार पर हुआ है, ऐसे में कोरोना जैसे संकट के दौरान देश अपने मतभेदों को एकतरफ रखकर बीमारी को खत्म करने पर ज्यादा जोर देंगे। जब कई देश एक साथ मिलकर इस बीमारी से लड़ेंगे तो जीत जरूर हासिल होगी।