स्पेन के शोधकर्ताओं का 6466 दवाओं पर अध्ययन के बाद दावा, कोरोना के इलाज में कारगर होंगी ये दो दवाएं


कोरोना वायरस का बढ़ता संक्रमण दुनियाभर के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। दुनिया के 200 से ज्यादा देश इस वायरस की चपेट में हैं। हर दिन इसके मामले बढ़ते जा रहे हैं। वैज्ञानिक एक ओर जल्द से जल्द इसकी वैक्सीन बनाने में लगे हैं तो दूसरी ओर इसकी दवा को लेकर भी शोध हो रहे हैं।


फिलहाल पहले से उपलब्ध दवाओं के जरिए कोरोना के लक्षणों का इलाज किया जा रहा है। कोरोना का इलाज ढूंढने की कड़ी में स्पेन के शोधकर्ताओं ने छह हजार से ज्यादा दवाओं का विश्लेषण कर ऐसे दवाओं की पहचान की है, जो इलाज में मददगार होगी। शोधकर्ताओं ने इस विशेष रिसर्च प्रोग्राम को कोविड मूनशॉट नाम दिया गया है।


कंप्यूटर तकनीक की मदद
स्पेन की रोविरा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर तकनीक की मदद से 6466 दवाओं का विश्लेषण कर दो दवाओं की पहचान की है। ये दोनो ड्रग्स संक्रमण के बाद रेप्लिकेशन यानी कोरोना को उसकी संख्या बढ़ाने से रोकेंगे।


एंजाइम पर लगाम
स्पेन की रोविरा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि ये दोनों दवा कोरोना के उस एंजाइम पर लगाम लगाएंगी, जिसके जरिए वायरस अपनी संख्या को बढ़ाता है। मालूम हो कि वायरस की संख्या बढ़ने के कारण मरीज को सांस लेने में तकलीफ बढ़ती जाती है और उसे वेंटिलेटर की जरूरत होती है।


कारप्रोफेन और सेलेकॉग्सिब
स्पेन के शोधकर्ताओं का यह शोध इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मॉलीक्युलर साइंसेज में प्रकाशित हुआ है। इसके मुताबिक कारप्रोफेन और सेलेकॉग्सिब एंटी-इंफ्लेमेट्री ड्रग हैं, जिनमें से एक का इस्तेमाल इंसान पर और दूसरे का इस्तेमाल जानवरों के लिए किया जाता है। शोधकर्ताओं का मानना है इस शोध के परिणाम कोरोना की वैक्सीन तैयार करने में भी मददगार साबित होंगे। 


कैसे काम करती है दवा
कोरोना वायरस में एम-प्रो नाम का एंजाइम पाया जाता है। यह एंजाइम ऐसा प्रोटीन बनाता है, जिसकी मदद से कोरोना वायरस शरीर में अपनी संख्या बढ़ाना शुरू कर देता है और लगातार बढ़ता जाता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, ये दवाएं इसी एंजाइम को रोकती है।


12 फीसदी की कमी
इस रिसर्च प्रोग्राम कोविड मूनशॉट के दौरान यह सामने आया कि कोरोना वायरस से पीड़ित मरीजों को 50 माइक्रोमोलर कारप्रोफेन देने पर एम-प्रो एंजाइम में करीब 12 फीसदी और सेलेकॉग्सिब देने पर चार फीसदी की कमी आती है। 


अन्य देशों में भी हो रहे ट्रायल
रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ अन्य देशों में भी ऐसे ट्रायल चल रहे हैं, जिनका उद्देश्य इसी एम-प्रो एंजाइम पर रोक लगाना है। इसके लिए एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग लेपिनोविर और रिटोनाविर के प्रयोग की बात भी सामने आ चुकी है, जिन्हें एचआईवी के इलाज के लिए बनाया गया था। मालूम हो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन भी ट्रायल में मदद कर रहा है।