मप्र / सरकार का रेत के दामों पर नियंत्रण नहीं रहेगा, जिले में एक ठेकेदार रेट तय करेगा

 भोपाल . प्रदेश में नई रेत खनन नीति लागू हो चुकी है। 12 दिसंबर तक 43 जिलों की 1438 रेत खदानें जिलेवार नीलाम होंगी। इसमें 400 नई खदानें हैं। सरकार का दावा है कि नई नीति से अवैध रेत खनन रुकेगा, राजस्व बढ़ेगा। बाजार में रेत की मात्रा बढ़ेगी, जिससे दाम घटेंगे। लेकिन, इस नीति में सरकार ने न तो रेत के दाम तय किए, न ही उसका दामों पर नियंत्रण होगा। जिले की सभी खदानें एक ही ठेकेदार के पास होंगी। वह ही रेट तय करेगा। ऐसे में रेत आपूर्ति कम होने की स्थिति में रेत के दाम बेलगाम होने की संभावना बढ़ गई है। अब तक खदानवार नीलामी होती थी, जिससे ठेकेदारों में प्रतिस्पर्धा होने का फायदा जनता को मिलता था, लेकिन जिले की खदानें एक ही ठेकेदार के पास होने से प्रतिस्पर्धा लगभग खत्म हो जाएगी। 


कितनी महंगी : 45 रु./ घनफीट हैं दाम, 80 रु. तक जा सकते हैं


अब तक खदानवार नीलामी के चलते नदियों की रेत की कीमतें सामान्य दिनों में 40 से 45 रुपए प्रति घनफीट रहती थीं। नई नीति से ठेकेदारों में प्रतिस्पर्धा खत्म होने से दाम 70 से 80 रुपए प्रति घनफीट तक जा सकते हैं। रेत की मांग ज्यादा होगी तो कीमतें भी बढ़ेंगी। 


इसलिए भी बढ़ सकती है रेत की कीमत
सरकार ने नई नीति में रॉयल्टी 125 रुपए घनमीटर रखी है। यह निविदा में प्रीमियम जुड़ने (बोली) के बाद महंगी होगी। ठेकेदार रेत खदानें लेने के लिए ऊंची बोली लगाएंगे। इससे सरकारी खजाने को 500 से 600 करोड़ रुपए तक का लाभ होगा। 2018-19 में 69 करोड़ रुपए राजस्व मिला था।


क्रश सेंड और ड्रेजिंग सेंड की नीति अब भी साफ नहीं
सरकार ने क्रश सेंड (पत्थर पीसकर बनने वाली) और बांधों की ड्रेजिंग से निकलने वाली रेत की बिक्री को लेकर नीति स्पष्ट नहीं की है। अधिसूचना अब तक जारी नहीं हुई। क्रश सेंड पर 50% तक रॉयल्टी छूट दी जानी है। सरकार ने बांधों की सालाना सफाई (ड्रेजिंग) से निकलने वाली रेत की बिक्री की अनुमति दे दी है, लेकिन बिक्री के अधिकार और दर को लेकर तस्वीर साफ नहीं है।


सीधी बात : नीरज मंडलोई, प्रमुख सचिव, खनिज विभाग


अवैध खनन कैसे रुकेगा। एक ठेकेदार से मोनोपॉली बढ़ेगी?
 नई नीति में आबकारी विभाग जैसा पेटर्न है। रेत निकालने से परिवहन तक एक ही ठेकेदार को सारे अधिकार होंगे। वो ईटीपी कराएगा। वैध रेत निकालने में उसे ज्यादा फायदा है। इसलिए अवैध खनन पर अंकुश लगेगा।
सरकार का रेत की कीमतों पर नियंत्रण कैसे रहेगा?
 सरकार ने मूल्य नियंत्रण में सीधे हस्तक्षेप नहीं रखा है। निविदा से एक प्लेटफॉर्म पर सब होगा। एक ठेकेदार होने से शासन-प्रशासन का सीधे समन्वय रहेगा। अभी टुकड़ों में खदानें होने से ज्यादा दिक्कतें हैं।
खदानों की नीलामी करने की जरूरत क्यों पड़ी?
 हम नीलामी की जगह निविदा लाए हैं। नीलामी में अनाप-शनाप बोली लगने से रेत की कीमतें बढ़ सकती थीं। निविदा सिस्टम में रेत की मात्रा की गणना के आधार पर ही ठेकेदार भाग लेंगे।
एम-सैंड पॉलिसी लागू क्यों नहीं हो पाई?
- इस पॉलिसी पर विधि विभाग की मंजूरी होना है। इसमें 50 रु. घनमीटर रॉयल्टी प्रोत्साहन में दी जाएगी।


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