ग्रामीण क्षेत्र में समय के साथ रोजगार तानेबाने में तेजी से आए बदलाव से घरेलू आय की बदौलत परिवार चलाने के मामले बढ़ रहे हैं। समय के साथ परिवार का खर्च उठाने की समस्या भी बढ़ी है। लेकिन काश्तकार परिवार संवारने के लिए अपनी आय के स्तोत्र भी बढ़ा रहे हैं।
घरेलू रोजागर के क्षेत्र में अपनी सक्रिय भागीदारी बढ़ाने के लिए काश्तकारों ने पशु चिकित्सा विभाग से भैंस वंशीय उन्नत नस्ल सुधार के लिए समुन्नत पशु प्रजनन कार्यक्रम के अंतर्गत प्राप्त मुर्रा नस्ल के पाड़ा को रोजगार का जरिया बना लिया है। ये पाड़े उन्नत नस्ल के वत्स पैदा करने के उददेश्य से गर्भाधान के लिए दिए जाते हैं और एक भैंस के गर्भाधान पर कम से कम चार सौ रूपये प्राप्त हो जाते हैं। पच्चीस हजार रूपये की इकाई लागत में 6250 रूपये हितग्राही अंशदान राशि एवं 18750 रूपये अनुदान होता है।
परिवार की आजीविका अच्छी चलने से चेहरे पर सुकून लिए सेमई ग्राम के चालीस वर्षीय घनश्याम दांगी भी हैं, जो अनुदान बतौर प्राप्त मुर्रा पाड़े से गर्भाधान कराने का काम देखते हैं। लेकिन पाड़े पर उनकी देखभाल और मेहनत उनके परिवार की आजीविका चलाने में काम आ रही है। वह घर बैठे ही प्रतिदिन इससे अच्छी खासी कमाई कर लेते हैं। इस पाड़े की बदौलत हुई कमाई से उन्होंने जमीन खरीदी, खेती बाड़ी में पैसा लगाया तथा मकान बनाने में भी पैसा लगाया। इसी कमाई से उनके दो बच्चे प्रायवेट स्कूल में पढ़ रहे हैं और वह अपने छोटे भाई की बेटी को भी पढ़ा रहे हैं। इस पाड़े के माध्यम से आसपास के कई गांवों में उन्नत नस्ल के वत्स पैदा हुए हैं।
रोजगार के रूप में पाड़े से घनश्याम के घर का खर्च अच्छा चल रहा है। घनश्याम प्रसन्न आंखों से कहते हैं कि घर का खर्च पाड़ा उठा रहा है। तीन संतानों की पढ़ाई का खर्च इसी की कमाई से उठा रहे हैं। दतिया के उपसंचालक पशु चिकित्सा डॉ. जी.दास. ने बताया कि जिले में कई परिवारों को अनुदान पर पाड़े दिए गए हैं। ये पाड़े लोगों की आजीविका चलाने के साथ-साथ नस्ल सुधारने में भी योगदान देते हैं।
दतिया/ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार का जरिया बने मुर्रा पाड़ा (सफलता की कहानी)