मध्य प्रदेश / स्पीकर को 7 दिन में फैसला लेना होगा, राज्यपाल की फिलहाल सीधी भूमिका नहीं

मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन (बाएं) और स्पीकर एनपी प्रजापति के लिए इमेज नतीजे


भोपाल. कमलनाथ सरकार पर भ्रष्टाचार का उद्योग चलाने का आरोप लगाते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए। बुधवार को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई। वहीं, प्रदेश में राजनीतिक संकट के दौर में विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति की भूमिका सबसे अहम हो गई है। कांग्रेस भी ज्यादा से ज्यादा समय लेना चाहती है, ताकि रूठे विधायकों को मनाया जा सके। विधानसभा सचिवालय को सभी 22 विधायकों के इस्तीफे मिल चुके हैं, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष का कहना है कि वह सभी विधायकों से व्यक्तिगत रूप से मिलने और उनकी वीडियोग्राफी के बाद ही इस्तीफों पर निर्णय लेंगे। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक उन्हें 7 दिन में फैसला लेना है। ये सात दिन विधायकों के इस्तीफा देने की तिथि से शुरू होंगे या फिर अध्यक्ष की मुलाकात से, यह फैसला स्पीकर को ही करना है। हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम में राज्यपाल की सीधी भूमिका नहीं होगी।


अब तक कांग्रेस के 114 में से 22 विधायकों ने इस्तीफे दिए हैं। यदि इन्हें स्वीकार किया गया, तो विधानसभा में सदस्यों की प्रभावी संख्या 206 पहुंच जाएगी। कांग्रेस की संख्या 22 विधायकों के इस्तीफे के बाद 92 रह जाएगी। भाजपा विधायकों की संख्या 107 है। 4 निर्दलीय, 2 बसपा और 1 सपा विधायक हैं, जो कांग्रेस को समर्थन कर रहे हैं। यदि वे समर्थन देते रहें, तब भी संख्या 99 होगी। राज्यसभा की तीन सीटों पर चुनाव होना है। नई स्थिति में एक सीट जीतने के लिए 52 वोटों की जरूरत होगी। भाजपा आसानी से दो सीट जीत सकती है। कांग्रेस को दूसरी सीट जीतने के लिए पांच 5 और वोटों की जरूरत होगी। ऐसे में तोड़फोड़ की संभावनाओं को बल मिल सकता है।


किसी भी सदस्य (विधायक) ने विधानसभा से इस्तीफा दिया है तो उससे विधानसभा अध्यक्ष का संतुष्ट होना जरूरी होगा। यदि वह संतुष्ट हैं, तो इस्तीफा स्वीकार कर सकते हैं। यदि अध्यक्ष को लगता है कि इस्तीफा दबाव डालकर दिलवाया गया है, तो वे सदस्य से बात कर सकते हैं या उसे अपने सामने उपस्थित होने के लिए कह सकते हैं। उसके बाद संतुष्ट होने पर ही अगली कार्रवाई को आगे बढ़ाया जा सकेगा।


विधानसभा अध्यक्ष इस्तीफा देने वाले सदस्यों को विधानसभा के पूरे कार्यकाल के लिए अयोग्य घोषित नहीं कर सकते। कर्नाटक में विधानसभा अध्यक्ष ने इस्तीफा देने वाले सदस्यों को पूरे कार्यकाल के लिए अयोग्य घोषित कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट तक मामला गया और सदस्यता से अयोग्य ठहराने काे तो सुप्रीम कोर्ट ने सही माना था, लेकिन उपचुनाव लड़ने की मंजूरी दे दी थी।


वर्तमान स्थिति में राज्यपाल का कोई सीधा रोल फिलहाल सियासी पटल पर नहीं दिखता, क्योंकि 16 मार्च से बजट सत्र शुरू हो ही रहा है। उसमें बहुमत का परीक्षण हो जाएगा। बजट, पॉलिसी मैटर, विश्वास या अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग होने पर सरकार के बहुमत का फैसला हो जाएगा। राज्यपाल के अभिभाषण पर सरकार को खतरा नहीं होता। उसमें संशोधन स्वीकृत हो सकते हैं, लेकिन वह कन्क्लूजन के बजाय इंडिकेटिव होती है। राज्यपाल को अभी इस मामले में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।


अगर विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 230 में से आधे से ज्यादा इस्तीफे हो जाते हैं, तो यह राज्यपाल के विवेक पर निर्भर करेगा कि वह सदन को भंग कर मध्यावधि चुनाव की सिफारिश करे या खाली सीटों पर उपचुनाव की। वर्तमान स्थिति में यह लगता है कि भाजपा उपचुनाव के पक्ष में रहेगी और कांग्रेस चाहेगी कि मध्यावधि चुनाव हों। मेरे हिसाब से उस स्थिति में मध्यावधि चुनाव की स्थिति नहीं बनेगी, उपचुनाव ही होंगे।