चीन की इस गुफा से जन्मा कोरोना वायरस! 16 साल पहले ही वैज्ञानिकों ने किया था आगाह

  • 2004 में युनान प्रांत की गुफा में छापा मारा गया था

  • वैज्ञानिकों ने चमगादड़ों की लीद में पाया था कोरोना वायरस

  • उस वक्त मिले 96% वायरस वर्तमान विषाणु से मेल खाते हैं

  • चमगादड़ों से भरी युनान की गुफा

  • चीन की सरहदों को पार करते हुए दुनियाभर में अपना पांव पसार चुके कोरोना वायरस का संक्रमण किस जानवर से इंसानों तक फैला यह बहस का विषय है। कोई चमगादड़ को कसूरवार ठहराता है तो कोई पैंगोलिन को जिम्मेदार बता रहा है। इस बीच कैलिफोर्निया में जेनेटिक सिक्वेंसेस को लेकर हुए एक रिसर्च में इस संभावना से इनकार किया जा चुका है कि इस वायरस को प्रयोगशाला में तैयार किया जा सकता है।
     

    कोरोना वायरस फैलने के बाद चीन के वुहान का यह सी मार्केट बंद कर दिया गया। यहां एक वन्य जीव सेक्शन था, जहां अलग-अलग जानवर जिंदा और उनके कटे मांस बेचे जाते थे। जिसमें ऊंट, कोआला, भेड़िये का बच्चा, झींगुर, बिच्छू, चूहा, गिलहरी, लोमड़ी, सीविट, जंगली चूहे, सैलमैन्डर, कछुए और घड़ियाल के मांस मिलते थे।

    कोरोना वायरस से होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़कर अब 60 हजार से पहुंच चुका है। साल 2002 से 2003 के बीच जिस तरह से सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिन्ड्रोम (सार्स, SARS) ने तबाही मचाई थी, जिसे SARS coronavirus (SARS-CoV) कहते हैं। ठीक उसी तरह कोविड-19 से दुनिया लोगों को परेशान किया हुआ है। फिलहाल कोरोना के मरीजों का इलाज भी SARS के दौरान होने वाले इलाज पर आधारित है या उसे ही आधार बनाकर किया जा रहा है, क्योंकि दोनों एक ही परिवार के वायरस हैं। अब सवाल यही उठता है कि युनान प्रांत की एक दूरस्थ गुफा, जो वुहान के दक्षिण-पश्चिम में लगभग 1,000 मील की दूरी पर स्थित है, वहां से कोरोना कैसे इतनी तेजी से पूरी दुनिया तक फैल गया।

    16 साल पहले ही भांप लिया गया था खतरा



    हॉर्सशू चमगादड़

  • दरअसल,कोरोना वायरस एकाएक नहीं आया, इसके खतरे को 16 साल पहले यानी 2004 में ही भांप लिया गया था। अक्टूबर 2007 में प्रकाशित clinical biological review में स्पष्ट तौर पर यह जानकारी दी गई थी कि दक्षिण चीन में अजीब स्तनपायियों खासकर हॉर्सशू चमगादड़ खाने की आदत हमें बड़ी मुसीबत की ओर ले जा सकती है। इससे SARS के दोबारा लौटने और दूसरे खतरनाक वायरस के पनपने का शक जताया गया था।

    2017 में भी एक पेपर प्रकाशित हुआ, जिससे पता लगा था कि चमगादड़ की चार अलग-अलग प्रजातियों, जिनमें से एक को उसके अजीबोगरीब नाक की वजह से हॉर्सशू बैट कहा जाता है, में कोरोना वायरस पाया गया है। अब मौजूदा वायरस से उस वायरस के 96% जीनोम (डीएनए) समान हैं, जो SARC में भी पाए गए थे।

    एक निजी शोध संगठन इकोलिटिक्स अलायंस के अध्यक्ष, पीटर दासजक की माने तो वह इंसानों और जानवरों के बीच इस वायरस के कनेकश्न का पिछले 15 साल से पता लगा रहे हैं। SARS महामारी के बाद जब उनकी टीम ने युनान की उस गुफाओं के आसपास रहने वाले लोगों का ब्लड टेस्ट लिया तो मोटे तौर पर उनमें से 3% लोगों में ही रोगप्रतिरोधक क्षमता थी। मतलब ये वायरस चमगादड़ों से मनुष्यों के शरीर में बार-बार हमला करते हैं।

    दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वुहान से दुनियाभर में फैली यह महामारी अचानक नहीं हुई बल्कि इसका पुराना इतिहास है। इस बात की भी पूरी संभावना है कि एक बार खत्म होकर यह दोबारा फिर लौट सकता है। मौजूदा हालातों में भोजन के लिए वन्य जीव को शामिल करना खतरे से खाली नहीं होगा। वैसे एशिया, अफ्रीका, यूएस और दुनिया के हर हिस्से में यह प्रचलित है।