COVID-19: क्या है सेरोलॉजिकल टेस्ट और भारत के लिए कितना है मददगार?

चीन, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर के शोधकर्ताओं ने एंटीबॉडी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है। शोधकर्ताओं के मुताबिक शरीर के खून में मौजूद एंटीबॉडी से ही पता चलता है कि किसी शख्स में कोरोना या किसी अन्य वायरस का संक्रमण है या नहीं। एंटीबॉडी संक्रमण से लड़ने में मदद करती है। एंटीबॉडीज प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा उत्पन्न किए गए वे प्रोटीन हैं जो मानव शरीर को किसी वायरस या बीमारी से लड़ने में मदद करते हैं। 


एंटीबॉडी टेस्ट में कोरोना संक्रमण के संभावित मरीज के खून का सैंपल लिया जाता है जिसके बाद महज 10-15 मिनट में जांच रिपोर्ट तैयार हो जाती है। अभी तक कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाने के लिए जेनेटिक टेस्ट किया जाता है जिसमें रूई के फाहे की मदद से मुंह के रास्ते से श्वास नली के निचले हिस्सा में मौजूद तरल पदार्थ का नमूना लिया जाता है।


आईसीएमआर को मिलेंगी सात लाख एंटीबॉडी टेस्टिंग किट भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) को आठ अप्रैल तक लगभग सात लाख त्वरित एंटीबॉडी टेस्टिंग किट मिल जाएंगी जिससे हॉटस्पॉट क्षेत्रों में कोविड-19 का बड़ी संख्या में परीक्षण किया जाएगा। हॉटस्पॉट उन क्षेत्रों को कहा जाता है जहां सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं। आईसीएमआर को चरणबद्ध तरीके से डिलीवरी मिलेगी। उम्मीद है कि उन्हें एक चरण में पांच लाख किट मिलेंगी। जिनके लिए ऑर्डर दिया जा चुका है। इससे पहले रविवार को आईसीएमआर ने त्वरित एंटीबॉडी-आधारित रक्त परीक्षण शुरू करने के लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए नए प्रोटोकॉल निर्धारित किए थे। शीर्ष चिकित्सा अनुसंधान निकाय ने क्लस्टर क्षेत्रों में रिपोर्टिंग के लिए एक नई रणनीति तैयार की है, जहां बड़ी संख्या में कोविड-19 के मामले सामने आ रहे हैं।


क्या है सेरोलॉजिकल टेस्ट ? एंटीबॉडी परीक्षण को ही सेरोलॉजिकल परीक्षण कहा जाता है। किसी संक्रमण के लक्षण को पहचानने में एंटीबॉडी को तीन-चार दिनों तक का वक्त लगता है, क्योंकि मानव शरीर एंटीबॉडी प्रोटीन को तभी पैदा करता है जब शरीर में कोई संक्रमण होता है। आईसीएमआर के मुताबिक खांसी, जुकाम आदि के लक्षण दिखने पर पहले 14 दिनों के लिए क्वारंटीन किया जाता है और उसके बाद एंटीबॉडी टेस्ट होता है। यदि रैपिड एंटीबॉडी ब्लड टेस्ट निगेटिव आता है तो मरीज का आरटी-पीसीआर (RT-PCR) टेस्ट होगा।



यदि उसके बाद यदि रिजल्ट पॉजिटिव आता है तो इसका मतलब कोरोना संक्रमण है। इसके बाद शख्स को प्रोटोकॉल के अनुसार आइसोलेशन में रखा जाएगा, उसका इलाज होगा और उसके संपर्क में आए लोगों को खोजा जाएगा। सेरेलॉजिकल टेस्ट जेनेटिक टेस्ट के मुकाबले काफी सस्ता होता है। सेरेलॉजिकल टेस्ट में रिवर्स-ट्रांसक्रिपटेस रीयल-टाइम पोलीमरेज चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) के जरिए बहुत ही कम समय में रिजल्ट मिल जाता है।


संभावित मरीजों को छांटने में कारगर है एंटीबॉडी टेस्ट लॉकडाउन के दौरान सेरोलॉजिकल टेस्ट (एंटीबॉडी टेस्ट) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता हैं क्योंकि इसका इस्तेमाल उन लोगों को छांटने के लिए किया जा सकता है जिनमें कोरोना का खतरा है। आसान शब्दों कहें तो इस टेस्ट की मदद से कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोगों की पहचान हो सकती है। उदाहरण के लिए, सभी स्वास्थ्य कर्मियों के साथ-साथ मीडियाकर्मी और पुलिसकर्मियों का टेस्ट किया जा सकता है और कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों को अलग किया जा सकता है।


जर्मनी और न्यूयॉर्क में भी इसी तरह के टेस्ट की है योजना जर्मनी में भी संक्रमित लोगों की संख्या का पता लगाने के लिए सेरेलॉजिकल टेस्ट करने की योजना है। वहीं न्यूयॉर्क भी जल्द ही इस टेस्ट को मंजूरी देने वाला है। अभी तक हुए प्रयोगों के आधार पर, वैज्ञानिकों का मानना है कि दूसरी बार संक्रमित होने के बाद इंसान खुद कोरोना वायरस के लिए प्रतिरक्षा बन सकता है। हालांकि, अभी तक तक ऐसा कोई आंकड़ा सामने नहीं आया है जिसमें इंसान के शरीर में कोरोना के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली मिलने के सबूत मिले हों।
वायरस के लिए आनुवांशिक परीक्षण की तुलना में सीरोलॉजिकल परीक्षण काफी सस्ते होते हैं - रिवर्स-ट्रांसक्रिपटेस रीयल-टाइम पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) - और मिनटों के भीतर परिणाम देते हैं। सीरोलॉजिकल परीक्षण रक्त का उपयोग करता है जबकि आरटी-पीसीआर परीक्षण नाक, मुंह या फेफड़ों के स्राव से एकत्र किए गए स्वाब से किया जाता है।