कौन हैं जून अलमेडा, जिन्होंने पहली बार खोजा था मनुष्यों में कोरोना वायरस

इस वक्त पूरी दुनिया को कोरोना वायरस नामक बीमारी ने परेशान कर रखा है। माना जा रहा है कि लाखों लोगों की जान ले चुका यह वायरस जानवरों से इंसानों के भीतर आया। कई रिपोर्ट्स में इसे मानव निर्मित भी बताया जा रहा है, हालांकि पुख्ता दोनों नहीं। इस बीच बीते कुछ दिन से जून अलमेडा का नाम इंटरनेट पर खूब सर्च किया जा रहा है, जिन्होंने पहली बार मनुष्यों में कोरोना वायरस की खोज की थी। आखिर कौन थीं यह महिला और क्या है इनके संघर्ष की कहानी, आगे जानते हैं।



 डॉक्टर जून अलमेडा


कोविड-19 या नोवल कोरोना वायरस एक नया वायरस है, लेकिन यह कोरोना वायरस का ही एक प्रकार जिसे इंसानों में सबसे पहले जून अलमेडा ने खोजा था। 1930 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर के उत्तर-पूर्व में स्थित एक बस्ती में रहने वाले बेहद साधारण परिवार में जून का जन्म हुआ। आर्थिक हालत ठीक न होने की वजह से 16 साल की उम्र में ही स्कूल छोड़ना पड़ा। फिर वह ग्लासगो शहर की ही एक लैब में बतौर तकनीशियन नौकरी करने लगीं। काम में मन लगा तो इसे ही अपना करियर बनाने की ठान ली। वह न केवल उन विषाणुओं की पहचान करती थी, जिनकी संरचना पहले अज्ञात थी, बल्कि उनका कार्य वायरल संक्रमण के रोगजनन पर भी प्रकाश डालता था। बाद में नई संभावनाएं तलाशने के लिए लंदन चलीं गईं और वर्ष


1954 में उन्होंने वेनेजुएला के कलाकार एनरीके अलमेडा से शादी कर ली।
अल्मेडा और उनके पति अपनी शादी के बाद कनाडा चले गए, जहाँ उन्हें टोरंटो में ओंटारियो कैंसर संस्थान में इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी तकनीशियन नियुक्त किया गया। यूके ने जून अलमेडा के काम की अहमियत को समझा और साल 1964 में उनके सामने लंदन के सेंट थॉमस मेडिकल स्कूल में काम करने का प्रस्ताव रखा। कनाडा से लौटने के बाद डॉक्टर अलमेडा ने डॉक्टर डेविड टायरेल के साथ रिसर्च का काम शुरू किया जो उन दिनों यूके के सेलिस्बरी क्षेत्र में सामान्य सर्दी-जुकाम पर शोध कर रहे थे।


डॉक्टर टायरेल ने जुकाम के दौरान नाक से बहने वाले तरल के कई नमूने एकत्र किए थे और उनकी टीम को लगभग सभी नमूनों में सामान्य सर्दी-जुकाम के दौरान पाए जाने वाले वायरस दिख रहे थे, लेकिन इनमें एक नमूना जिसे बी-814 नाम दिया गया था और उसे साल 1960 में एक बोर्डिंग स्कूल के छात्र से लिया गया था, जो बाकी सबसे अलग था।
 
वास्तव में, इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी का उपयोग करते हुए, अलमेडा रूबेला वायरस के पहले दृश्य के लिए भी जिम्मेदार थी, उन्होंने यह पता लगाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि हेपेटाइटिस-बी वायरस के दो अलग-अलग घटक हैं, एक कण की सतह पर, और एक आंतरिक रूप से।
पहला मानव कोरोनावायरस 1965 में वैज्ञानिकों डेविड टायरेल और एमएल बीनो द्वारा खोजा गया था, जो कि जानवरों में बीमारी पाए जाने के वर्षों बाद सामने आया था। इस जोड़ी ने वायरस को बी 814 कहा, और पाया कि जब वे मानव भ्रूण श्वासनली के ऊतकों में वायरस पैदा होने में सक्षम थे, तो रूटीन सेल लाइनों में ऐसा करने में असमर्थ थे।


डॉक्टर टायरेल को लगा, क्यों ना इस नमूने की जांच डॉक्टर जून अलमेडा की मदद से इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के जरिए की जाए। यह सैंपल जांच के लिए डॉक्टर अलमेडा के पास भेजा गया, जिन्होंने परीक्षण के बाद बताया कि 'ये वायरस इनफ्लूएंजा की तरह दिखता तो है, पर ये वो नहीं, बल्कि उससे कुछ अलग है।'


और यही वो वायरस है जिसकी पहचान बाद में डॉक्टर जून अलमेडा ने कोरोना वायरस के तौर पर की। डॉक्टर अलमेडा ने दरअसल इस वायरस जैसे कण पहले चूहों में होने वाली हेपिटाइटिस और मुर्गों में होने वाली संक्रामक ब्रोंकाइटिस में देखे थे।
डॉक्टर टायरेल, डॉक्टर अलमेडा और सेंट थॉमस मेडिकल संस्थान के प्रोफेसर टोनी वॉटरसन थे, जिन्होंने इस वायरस की ऊंची-नीची बनावट को देखते हुए ही इस वायरस का नाम कोरोना वायरस रखा था। दरअसल, जून का पहला रिसर्च पेपर हालांकि यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि 'उन्होंने इन्फ्लूएंजा वायरस की ही खराब तस्वीरें पेश कर दी हैं, लेकिन सैंपल संख्या बी-814 से हुए इस नई खोज को वर्ष 1965 में प्रकाशित हुए ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में और उसके दो वर्ष बाद जर्नल ऑफ जेनेरल वायरोलॉजी में तस्वीर के साथ प्रकाशित किया गया। अलमेडा ने 2007 में दुनिया को जब अलविदा कहा तब उनकी उम्र 77 वर्ष थीं। अब उनकी मृत्यु के 13 साल बाद दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस संक्रमण को समझने में उनकी रिसर्च की मदद मिल रही है।