चीन से निकलकर आ सकती हैं कई कंपनियां भारत इन कारणों के चलते


कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से ना सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था प्रभावित है। चीन से कोरोना फैलने की वजह से उसकी छवि दुनिया में खराब हो गई है। ऐसे में भारत के पास अब सेवा क्षेत्र के अलावा मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में भी चीन को पछाड़ने का सुनहरा मौका है।


अब हाल यह है कि कई दिग्गज कंपनियां चीन से निकलना चाहती हैं। इस अवसर का अगर आंशिक लाभ भी भारत को मिलता है तो ये हमें गुणात्मक रूप से आगे ले जाने में काफी मददगार होगा।


भारत लगातार मेक इन इंडिया को मजबूत करने का प्रयास कर रहा है। इन प्रयासों के चलते और चीन से विदेशी कंपनियों के मोहभंग वाले दोहरे असर के साथ सेवा क्षेत्र के अतिरिक्त हर पड़ोसी देश को मैन्यूफैक्चरिंग में भी मात दे सकते हैं।


इन कारणों के चलते चीन से भारत आ सकती हैं कंपनियां


किसी भी कंपनी को अपना प्लांट लगाने में दो साल लग जाते हैं। प्लग एंड प्ले स्कीम के तहत कंपनियों को भारत में कुछ ही दिनों में जमीन के साथ-साथ अन्य सुविधाएं मिल जाएंगी।


विशेष आर्थिक क्षेत्र-सेज में 23 हजार हेक्टेयर जमीन खाली पड़ी हुई है। यदि चीन से कंपनियां भारत आती हैं, तो इस जमीन का इस्तेमाल किया जाएगा। इससे भारत और कंपनियां दोनों को पायदा होगा।


प्लग एंड प्ले मॉडल के तहत चीन से निकलने वाली कंपनियों को भारत में लाने की प्लानिंग की गई है। इसके तहत रणनीति बनाई गई और कंपनियों को आकर्षित करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। 


कंपनियों के लिए मोडिफाइड, इंडस्ट्रियल, इंफ्रास्ट्रक्चर, अपग्रेडेशन स्कीम-एमआईअआईयूएस जरूरी होता है, जिसमें बदलाव किया जा रहा है। इसके लिए सरकार की ओर से 50 करोड़ का अनुदान तुरंत मिलेगा।


सबसे पहले ये इकाइयां आ सकती हैं भारत


ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक भारत इन कंपनियों को बिना किसी परेशानी के जमीन मुहैया कराने पर काम कर रहा है। कंपनियों के कारखानों को स्थापित करने के लिए देश के कई हिस्सों में 4,61,589 हेक्टेयर जमीन की पहचान की गई है। इसमें से 1,15,131 हेक्टेयर की मौजूदा इंडस्ट्रियल जमीन भी शामिल है। यह निवेश के लिए आकर्षक एक अन्य देश लक्जमबर्ग के कुल क्षेत्रफल का लगभग दोगुना होगा। लक्जमबर्ग का क्षेत्रफल 2,43,000 हेक्यर है।


इस संदर्भ में बारक्लेज बैंक के वरिष्ठ अर्थशास्त्री राहुल बजोरिया ने कहा कि, 'अगर जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पारदर्शी और तेज हो जाए तो देश में एफडीआई का इनफ्लो बढ़ सकता है। यह ईज और डूइंग बिजनेस (कारोबार सुगमता) के अहम पहलुओं में से एक है।'


चीन से सबसे फार्मा इंडस्ट्री का भारत आने का अनुमान जताया जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि हाल ही में कोरोना के खिलाफ लड़ाई के लिए भारत ने अमेरिका सहित की देशों में जरूरी दवाइयां मुहैया कराई थीं। इससे फार्मा सेक्टर में भारत की प्रशंसा हुई। मालूम हो कि यूएसएफडीए के मानकों के अनुरूप अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा दवा बनाने के प्लांट भारत में हैं।


अमेरिका, ब्रिटेन, जापान व ऑस्ट्रेलिया की कंपनियां चीन से बाहर हो सकती हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मोबाइल उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल डिवाइसेस, टैक्सटाइल, सिंथेटिक फेब्रिक्स, फूड प्रोसेसिंग इन सेक्टर्स की कंपनियों का एक बड़ा भाग चीन से बाहर निकलने के अंतिम चरण में है।


इसलिए भी आकर्षित हो सकती हैं कंपनियां
चीन से बाहर होने वाली कंपनियां भारत में इसलिए भी आ सकती है क्योंकि हाल ही में भारत में विदेशी कंपनियों के लिए कई नियम सरल किए हैं। इन नियमों में टैक्स सिस्टम भी मौजूद है। भारत में डायरेक्ट टैक्स में काफी सुधार हुए हैं। साथ ही ग्रामीण इलाकों में इंफास्ट्रक्चर भी बढ़ा है। इसके अतिरिक्त श्रम कानूनों में सुधार बढ़ा है। सितंबर 2019 मे कार्पोरेट कर में भारी कमी की गई, जिससे विदेशी कंपनियां ज्यादा आती हैं।


भारत चीन से कई मापदंड आगे है। जैसे कि भारत में देश में प्रोफेशनल आईटी, सॉफ्टवेयर में काम करने वाले कुशल और दक्ष लोग हैं। इस कारण वेदिशी कंपनियां भारत आ सकती हैं। एक सर्वे के अनुसार, भारत में चीन के मुकाबले श्रम लागत भी कम है। साथ ही भारत का युवा चीन के युवाओं की अपेक्षा अंग्रेजी की ज्यादा अच्छी समझ रखता है। इस कारण यूरोप और अमेरिका की कंपनियों से कारोबारी कम्यूनिकेशन में भी आसानी रहती है।