वैज्ञानिकों के अनुसार यूरोप और अमेरिका में कोविड-19 महामारी का कहर बरपाने वाला कोरोना वायरस का रूप सामान्य से कहीं ज्यादा अलग और घातक है। मुख्यत: ब्रिटेन और अमेरिका के न्यूयॉर्क में तबाही मचा रहा कोरोना वायरस का स्ट्रेन (रूप) जी-614 है। शोधकर्ताओं के अनुसार, यह अन्य यूरोपीय देशों और अमेरिका के अन्य भागों खासकर वाशिंगटन में प्रकोप दिखाने वाले डी-614 स्ट्रेन से ज्यादा खतरनाक है।
अमेरिका और ब्रिटेन के शोधकर्ताओं ने रोगियों के नमूनों से लिए गए वायरस का अध्ययन किया और पाया कि चीन में महामारी फैलाने वाले वायरस की तुलना में यह अधिक संक्रामक है। उन्होंने कहा कि यह नया स्ट्रेन प्रतिरक्षा प्रणाली या वैक्सीन से बचने के लिए अपना स्वरूप बदलने में सक्षम भी है, जो एक टीके की प्रभावशीलता और प्राकृतिक प्रतिरक्षा की संभावना को भी कम करती हैं।
जी-614 पहली बार फरवरी में जर्मनी में पाया :
यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड और लॉस अलामोस नेशनल लेबोरेटरी, न्यू मैक्सिको में वैज्ञानिकों द्वारा किए एक सरकारी अध्ययन में कहा कि वायरस का संस्करण जी-614 पहली बार फरवरी में जर्मनी में पाया गया। वायरस मूल रूप से उत्परिवर्तित होते हैं, लेकिन वे बदलकर शरीर के लिए इतने अपरिचित हो जाते हैं कि पहले की वैक्सीन भी बेअसर हो जाती है। मार्च में आबादी में सार्स-सीओवी-2 के कम से कम एक दर्जन से अधिक विभिन्न स्ट्रेन मिले थे। जिन्हें डी-614-जी के रूप में संदर्भित किया गया था। शोधकर्ताओं ने म्यूटेशन के बिना वायरस को डी-614 और संस्करण को जी-614 के रूप में संदर्भित किया। स्ट्रेन में बदलाव वायरस के केवल एक छोटे हिस्से को प्रभावित करता है।
जी-614 में वायरल लोड अधिक :
यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड के अस्पताल में 447 रोगियों के नमूने से पता चला है कि जी-614 से संक्रमित होने पर लोगों का वायरल लोड अधिक था, जिसका अर्थ है कि उनके शरीर में वायरस की मात्रा अधिक थी। उनकी सांस में अधिक वायरस हो सकते हैं। शोधकर्ताओं ने लिखा, अप्रैल की शुरुआत में नमूनों से पता चला कि मार्च में जी-614 की आवृत्ति खतरनाक गति से बढ़ रही थी, और यह स्पष्ट रूप से एक व्यापक भौगोलिक प्रसार दिखा रहा था।
हफ्तों में ही जी-614 ने डी-614 पर बढ़त बनाई :
दुनियाभर के नमूनों और वुहान में मनुष्यों में वायरस डी-614 की मूल स्थिति में पाया गया है। हालांकि, नए स्ट्रेन जी-614 ने विशेष रूप से पहले यूरोप और उत्तरी अमेरिका में असर दिखाया। अधिकांश देशों और राज्यों में एक मार्च से पहले के नमूनों में डी-614 रूप था। इसके बाद जहां भी जी-614 ने आबादी में प्रवेश किया, उसकी आवृत्ति में तेजी से वृद्धि हुई और कई मामलों में जी-614 केवल कुछ ही हफ्तों में प्रमुख कारक बन गया। मार्च के मध्य में जी-614 पूरे यूरोप में आम हो गया और अप्रैल तक हावी रहा। उत्तरी अमेरिका में महाद्वीप में संक्रमण डी-614 स्ट्रेन द्वारा शुरू हुआ था, लेकिन मार्च की शुरुआत में जी-614 कनाडा और अमेरिका दोनों में देखा गया और मार्च के अंत तक यह दोनों देशों में प्रमुख रूप बन गया था।
एशिया में डी-614 का मुख्य प्रकोप :
अधिकांश देशों का प्रकोप डी-614 के साथ शुरू हुआ। चीन और सिंगापुर में यह प्रमुख प्रभाव बना रहा, लेकिन कई देशों में मार्च में जी-614 स्ट्रेन द्वारा बदल दिया गया। हालांकि, डी-614 स्ट्रेन एशिया में प्रमुख बना रहा। वहीं, शुरुआत में ब्रिटेन में सबसे आम बी-121 स्ट्रेन और B-11 स्ट्रेन रहे।
चीन के अध्ययन में 30 स्ट्रेन का दावा :
चीन में झेजियांग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन ने दावा किया है कोरोना वायरस के 30 से अधिक स्ट्रेन हो सकते हैं। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट में प्रकाशित लेख के अनुसार, जिनमें से 19 को पहले कभी नहीं देखा गया। कुछ में कोशिकाओं पर आक्रमण करने की क्षमता अधिक है। कुछ में तेजी से प्रसार की। इनमें से सबसे घातक यूरोप और न्यूयॉर्क में देखे गए थे। वहीं इससे कमजोर अमेरिका के अन्य हिस्सों जैसे वाशिंगटन में पाया गया।
कोरोना वायरस में बदलाव, बीमारी के कमजोर पड़ने की संभावना
- सैंपल में 81 प्रकार के आरएनए लेटर लापता पाए गए
- ऐसे बदलाव 2003 में सार्स महामारी में देखे गए थे
वैज्ञानिकों ने पहली बार कोरोना वायरस में एक खास तरह का बदलाव देखा। एरिजोना में कोविड-19 संक्रमित व्यक्ति के वायरस नमूने की जांच में जेनेटिक मैटेरियल का एक हिस्सा लापता हो गया। हमारी कोशिकाओं में मौजूद डीएनए की तरह ही वायरस में जेनेटिक मैटेरियल होता है।
एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी (एएसयू) के शोधकर्ताओं ने 382 मरीजों में वायरस के नमूने लिए गए, जिसमें वायरस के कुछ में जेनेटिक मैटेरियल के हिस्से लापता थे। एक सैंपल में आरएनए के 81 लेटर गायब थे। अध्ययनकर्ता डॉ. एफ्रेम लिम ने बताया कि मानव जीनोम में 300 करोड़ डीएनए लेटर होते हैं जबकि कोरोना वायरस में 30,000 आरएनए लेटर पाए गए हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार कुछ वायरसों में लगातार बदलाव होते रहते हैं, जिससे उनको रोकना और उपचार करना बहुत कठिन हो जाता है। ऐसा ही बदलाव 2003 में सार्स महामारी के दौरान देखने को मिला था। जिसके बाद महामारी खत्म होती गई। इससे यह उम्मीद जताई जा रही है कि कोविड-19 भी धीरे-धीरे कमजोर पड़ेगी।