दुनिया से शायद कभी ना जाए कोरोना वायरस, बन सकती है स्थानिक बीमारी, इसके क्या मायने?


विश्व स्वास्थ्य संगठन के वरिष्ठ अधिकारी ने चेतावनी देते हुए कहा कि एचआईवी की तरह ही कोरोना वायरस बीमारी स्थानिक हो सकती है यानि ऐसा भी हो सकता है कि यह बीमारी कभी दुनिया से जाए ही ना। उन्होंने दुनिया से अपील की कि संक्रमण को रोकने के लिए और सख्ती से नियमों का पालन करना होगा।


विश्व स्वास्थ्य संगठन के इमरजेंसी विभाग के डायरेक्टर माइक रियान ने कहा कि देश की सरकारें इस बात को गंभीरता से लें और लिखकर याद कर लें कि कोरोना वायरस एचआईवी की तरह ही दूसरी स्थानिक (एंडेमिक) बीमारी बन सकती है।
डॉक्टर रियान ने बताया कि अगर कोरोना की वैक्सीन ढूंढ़ ली जाए तभी भी इस महामारी को काबू करने के लिए काफी प्रयत्न करने होंगे। कोविड-19 बीमारी से अबतक दुनिया में 40 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं और तीन लाख से ज्यादा लोगों की जान चली गई है।
स्थानिक (एंडेमिक) बीमारी क्या होती है?
अमेरिका के सेंटर ऑफ डिसीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन के मुताबिक कोई भी बीमारी स्थानिक तब होती है जब दुनिया की जनसंख्या में इसकी उपस्थिति और सामान्य प्रचलन जारी रहे यानि कि बढ़ता रहे।


जब किसी बीमारी के मामलों में तेजी होती है तो उसे एपिडेमिक यानि कि संक्रामक रोग की श्रेणी में रखा जाता है लेकिन जब एपिडेमिक दुनिया के कई देशों और इलाकों में फैल जाता है तो इसे महामारी का रूप दे दिया जाता है। 


उदाहरण के तौर पर स्थानिक बीमारी की श्रेणी में छोटी चेचक, मलेरिया शामिल हैं। दुनिया के कुछ हिस्सों में इन बीमारी से संक्रमित होने वाले मरीजों की संख्या का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है। 


स्थानिक हैजा की 1948 की परिभाषा के अनुसार एक स्थानिक इलाका वो होता है सालों साल हैजा से संक्रमित मरीजों की संख्या बनती रहती है। महामारी विज्ञान की शब्दावली के मुताबिक एक स्थानिक इलाका वो होता है जहां बीमारी या संक्रमण के उपस्थिति जारी है या फिर एक इलाके या समूह में बीमारी का सामान्य प्रचलन जारी है।


बीमारी के स्थानिक होने पर क्या होता है?
जर्नल साइंस में छपे एक आलेख के मुताबिक जब कोई संक्रामक रोग स्थानिक बनता है तो लगातार सहन करने जैसी स्थिति पैदा कर देता है जिसका परिणाम यह होता है कि बीमारी से बचाने की जिम्मेदारी सरकार से हटकर व्यक्ति विशेष पर आ जाती है। 


इसका मतलब यह है कि किसी बीमारी से लड़ने के लिए आम जनता खुद से जोखिम का प्रबंध कर उसे नियंत्रण करने के रास्ते ढुंढती है जबकि वायरस को रोकने के लिए सरकारी तंत्र जो काम कर रहा है उस पर जिम्मेदारी कम हो जाती है। एक बार लोग वायरस के खतरे के प्रति जागरुक हो जाते हैं तो उनके व्यवहार में बदलाव आता है।


आलेख की माने तो एपिडेमिक यानि कि संक्रमित रोग की मृत्युदर स्थानिक बीमारी की तुलना में ज्यादा होती है। किसी भी संक्रामक बीमारी के लिए मेडिकल अनुभव और ज्ञान की कमी होने से मृत्युदर ज्यादा रहती है।  


कोई बीमारी स्थानिक कब होती है?
एपिडेमियोलॉजी और कम्यूनिटी हेल्थ के जर्नल में छपे एक गणितीय मॉडल के मुताबिक अगर आरजीरो यानि कि ऐसी दर जिस पर वायरस का संक्रमण फैल रहा है। अगर आरजीरो (R0) एक के बराबर रहेगा तो इसका मतलब है कि बीमारी स्थानिक है और अगर आरजीरो नंबर एक से ज्यादा रहेगा तो इसका मतलब होगा कि मामले लगातार बढ़ रहे हैं और ये महामारी का रूप ले सकते हैं।


वहीं, अगर आरजीरो नंबर एक से कम रहेगा तो इसका मतलब है कि वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या में कमी आ रही है। आरजीरो नंबर का मतलब एक बीमार व्यक्ति से कितने लोग संक्रमित हुए हैं।