कोरोना ‘बहुरूपिये’ की रफ्तार धीमी न होती तो ज्यादा खतरनाक होता संक्रमण


कोरोना वायरस के टीके की तलाश के साथ-साथ वैज्ञानिक उसके प्रसार के तरीकों की भी खोज में जुटे हैं। नतीजों से यही सामने आया है कि कोरोना के रूप बदलने की रफ्तार धीमी रही जिसकी वजह से यह ज्यादा घातक नहीं बन पाया। वायरस के जीनोम की पड़ताल से पता चला कि वुहान से निकला वायरस कैसे  म्यूटेट होकर इंसानों को शिकार बनाया।


इस अध्ययन में सामने आया है कि ज्यादातर मामलों में 10 या उससे भी कम म्यूटेशन वाले कोरोना जीनोम ही मिले हैं। वैज्ञानिकों ने वायरस के जीनोम के उन हिस्सों की भी पहचान की है, जिन्हें एंटी वायरल दवाओं के जरिए निशाना बनाकर इसका जल्दी खात्मा किया जा सकता है।


26 दिसंबर : हुई पहचान


दिसंबर में चीन के वुहान में एक सीफूड बाजार के आसपास निमोनिया के कई रहस्यमयी मामले सामने आने लगे थे। जनवरी की शुरुआत में शोधकर्ताओं ने नए कोरोना वायरस का पहला जीनोम तैयार किया। उन्होंने सीफूड बाजार में काम करने वाले एक व्यक्ति के शरीर से यह वायरस निकाला था। इसे जीनोम वुहान हू-1 नाम दिया गया। 


8 जनवरी : आरएनए में पहली गड़बड़ी


संक्रमित कोई भी कोशिका लाखों वायरस बनाती हैं। इन सभी में मूल जीनोम की ही कॉपी तैयार होती है। हालांकि, कई बार जीनोम की कॉपी बनाते समय कोशिका गलती कर देती है। इससे आमतौर पर आरएनए में एक वर्ण का क्रम बदल जाता है या गड़बड़ा जाता है। इस गड़बड़ी को ही म्यूटेशन कहते हैं। 


15 जनवरी : सिएटल में दस्तक  


वुहान से 15 जनवरी को एक व्यक्ति सिएटल पहुंचा। उसमें मिले वायरस के जीनोम में एकल वर्ण (सिंगल लेटर) के तीन म्यूटेशन मिले। ये म्यूटेशन चीन के मरीजों में भी थे। 


19 जनवरी :  शंघाई से म्यूनिख पहुंचा


19 जनवरी को वाशिंगटन में कोविड-19 के पहले मामले की पुष्टि हुई थी। इसी दिन एक महिला शंघाई से म्यूनिख पहुंची। शंघाई से निकलने से पहले महिला के अभिभावक वुहान से मिलने आए थे। म्यूनिख पहुंचकर संक्रमित मिली। उसके ऑफिस का एक व्यक्ति भी संक्रमित मिला। जर्मन व्यक्ति से लिया गए वायरस का म्यूटेशन चीन से जुड़ा पाया गया। बाद में वायरस यूरोप के कई हिस्सों में मिला।


24 फरवरी : दबे पांव फैली महामारी


पांच हफ्ते बाद वॉशिंगटन की स्नोहोमिश काउंटी में एक स्कूली छात्र संक्रमित मिला। छात्र में मिले कोरोना के जीनोम में सिएटल के पहले मरीज के समान म्यूटेशन था। साथ ही तीन अतिरिक्त म्यूटेशन भी देखे गए। पुराने और नए म्यूटेशन के मिश्रण से पता लगा कि इस छात्र में कोरोना दूसरे देश से आए संक्रमित से नहीं आया। 


26 फरवरी : कैलिफोर्निया में संक्रमण


कोरोना का एक दूसरा स्वरूप गुप्त रूप से कैलिफोर्निया में भी बढ़ रहा था। 26 फरवरी को सोलानो काउंटी में एक ऐसा मरीज सामने आया, जिसका न तो किसी पुराने मरीज से संपर्क मिला और न ही कोई यात्रा इतिहास था। इसके बावजूद उसके सैंपल की जांच में मिला जीनोम वुहान में मिले मूल जीनोम जैसा था और उसमें सिर्फ एक म्यूटेशन पाया गया। 


01 मार्च :  न्यूयॉर्क में शुरुआत


न्यूयॉर्क में पहला मामला एक मार्च को मिला। मैनहटन में रहने वाली संक्रमित महिला ईरान से लौटी थी। उनमें वैसा म्यूटेशन नहीं मिला, जो उस महिला में मिले कोरोना जीनोम में मिला था। वहीं, न्यूयॉर्क के ज्यादातर मामलों में मिले कोरोना के आनुवांशिकी तार यूरोप से जुड़े पाए गए हैं। वहीं कुछ मामले एशिया से तो कुछ अमेरिका के ही अन्य हिस्सों से जुड़े पाए गए।


ऐसा है कोरोना वायरस जीनोम


कोरोना वायरस एक तैलीय झिल्ली (ऑयली मेंब्रेन) है। इस झिल्ली में अपनी लाखों प्रतिकृतियां (कॉपी) बनाने के लिए जेनेटिक निर्देश भरे हुए हैं। ये निर्देश आरएनए के 30,000 वर्णों में ए, सी, जी और यू के क्रम में लिखे (एनकोडेड) होते हैं। संक्रमित कोशिकाएं इन्हें पढ़कर कई तरह के वायरस प्रोटीन बनाती हैं।


ढूंढ़ा वायरस पर हमले का तरीका


वायरस जीनोम के जिन हिस्सों में कई म्यूटेशन हुए हैं, उनमें ज्यादा लचीलापन मिला। जीनोम के जिन हिस्सों में कम म्यूटेशन हुआ, वे ज्यादा नाजुक हैं। वैज्ञानिकों का मानना है, एंटीवायरल ड्रग के जरिए वायरस पर हमला करने के लिए इन हिस्सों को निशाना बनाया जा सकता है।


यह देखने में आया है कि वायरस जीनोम के जिन हिस्सों में कई म्यूटेशन हुए हैं, उनमें ज्यादा लचीलापन मिला है। वे वायरस को नुकसान पहुंचाए बिना अपने आनुवांशिक अनुक्रम (जेनेटिक सीक्वेंस) में बदलाव सह सकते हैं।


जीनोम के जिन हिस्सों में कम म्यूटेशन हुआ है, वे ज्यादा नाजुक हैं। लिहाजा, इन हिस्सों में म्यूटेशन अपने प्रोटीन में विनाशकारी परिवर्तन से वायरस को नष्ट कर सकते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है, एंटीवायरल ड्रग के जरिए वायरस पर हमला करने के लिए इन हिस्सों को निशाना बनाया जा सकता है।


वुहान के उदाहरण से समझें म्यूटेशन...


वुहान में जब एक शुरुआती मरीज में वायरस का जीनोम देखा गया तो यह बिल्कुल पहले मरीज जैसा था। लेकिन आरएनए का 186वां वर्ण ‘यू’ के बजाय ‘सी’ मिला। जब शोधकर्ताओं ने वुहान में मरीजों के समूह के कई जीनोम का अध्ययन किया तो उन्हें इनमें कुछेक नए म्यूटेशन ही मिले। इससे संकेत मिला कि इन अलग-अलग जीनोम का पूर्वज एक ही था। इससे अनुमान लगा कि महामारी की शुरुआत चीन में नवंबर 2019 के आसपास हुई थी।
 
27 फरवरी : एक वंशज, दो और म्यूटेशन


सात हफ्तों बाद वुहान से करीब एक हजार किमी. दूर ग्वांगझू में सिर्फ एक अन्य सैंपल में आरएनए के 186वें वर्ण में ही म्यूटेशन पाया गया। इससे अंदाजा लगा कि यह वुहान के पहले नमूने में मिले वायरस का वंशज हो सकता है। इन सात हफ्तों के दौरान ग्वांगझू में कई लोगों में फैल रहे नए वायरस की कई पीढ़ियां तैयार हुईं। इस दौरान जीनोम में दो नए म्यूटेशन हुए। इसके तहत आरएनए के दो और वर्ण ‘यू’ में तब्दील हो गए थे।


म्यूटेशन का असर कब दिखता है


म्यूटेशन अक्सर प्रोटीन में बदलाव किए बिना जीन को बदलता है। प्रोटीन अमीनो अम्ल की लंबी शृंखला होती है। हर अमीनो अम्ल में तीन आनुवांशिक वर्ण (जेनेटिक लैटर) होते हैं। ऐसे साइलेंट म्यूटेशन से प्रोटीन में कोई बदलाव नहीं होता है। वहीं, नॉन साइलेंट म्यूटेशन प्रोटीन का अनुक्रम (सीक्वेंस) बदल देता है। ग्वांगझू के नमूने में मिले कोरोना ने दो नॉन साइलेंट म्यूटेशन अर्जित कर लिए थे। लेकिन प्रोटीन सैकड़ों या हजारों अमीनो अम्ल से बने होते हैं। लिहाजा, महज एक अमीनो अम्ल के बदलने से प्रोटीन के आकार या उनके कार्य में कोई खास बदलाव नहीं आता।


राहत : 10 म्यूटेशन वाले ही जीनोम


आज जब महामारी चरम पर है। तब ज्यादातर 10 या उससे भी कम म्यूटेशन वाले कोरोना जीनोम ही मिल रहे हैं। कुछेक जीनोम में ही 20 से ज्यादा म्यूटेशन दिखे हैं। कोविड-19 के सभी म्यूटेशन की पड़ताल के बाद वैज्ञानिकों ने कहा, इनसे इंसान को अलग-अलग प्रभावित करने के साक्ष्य नहीं मिले हैं। फिलहाल म्यूटेशन की रफ्तार से लगता है कि कोरोना में ऐसा बदलाव आने में कई वर्ष लग जाएंगे। इसलिए 2021 तक भी वैक्सीन आ गई तो सालों-साल कोरोना बेअसर रहेगा।