क्या लोगों को पागल बना रहा कोरोना? शोध में दावा- विक्षिप्त जैसा व्यवहार कर रहे मरीज


कोरोना के मरीजों में साइकोसिस के लक्षण दिखाई दे रहे हैं


कोरोना वायरस पर हुए शोधों में यह बात तो सामने आ चुकी है कि यह न केवल इंसान के फेफड़े, बल्कि हृदय से लेकर आंतों और नसों से लेकर तंत्रिका तंत्र तक को प्रभावित कर रहा है। अब ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ता एक नए शोध के आधार पर एक दावा कर रहे हैं कि कोरोना वायरस के कारण संक्रमितों के दिमाग पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कोरोना के मरीजों में साइकोसिस या विक्षिप्तता के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। करीब चार फीसदी संक्रमितों में यह समस्या देखी जा रही है। 


कोरोना वायरस पर हुए शोधों में यह बात तो सामने आ चुकी है कि यह न केवल इंसान के फेफड़े, बल्कि हृदय से लेकर आंतों और नसों से लेकर तंत्रिका तंत्र तक को प्रभावित कर रहा है। अब ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ता एक नए शोध के आधार पर एक दावा कर रहे हैं कि कोरोना वायरस के कारण संक्रमितों के दिमाग पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। कोरोना के मरीजों में साइकोसिस या विक्षिप्तता के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। करीब चार फीसदी संक्रमितों में यह समस्या देखी जा रही है। 


दुनियाभर में पूर्व में हुए 14 अध्ययनों का विश्लेषण करने के बाद शोधकर्ताओं ने यह बात कही है। उनके मुताबिक मरीजों को कुछ आवाजें सुनाई दे रही हैं और वे भ्रमित हो रहे हैं। मालूम हो कि नए कोरोना वायरस के अलावा मर्स, सार्स और स्वाइन फ्लू के भी कुछ फीसदी मरीजों में ऐसे मामले देखे गए थे। 


साइकोसिस क्या है?
साइकोसिस दरअसल मानसिक स्थिति से जुड़ी एक असामान्य दशा है। इसमें पीड़ित का दिमाग यह तय नहीं कर पाता कि वास्तविकता क्या है और आभासी क्या है। इसमें पीड़ित को किसी भ्रम में ही विश्वास हो जाता है। उसे सामान्य लोगों को न सुनाई देने वाली आवाजें सुनाई देती है और सामान्य लोगों को न दिखाई देने वाली चीजें दिखाई देने लगती हैं। यानी भ्रम भी उनके लिए सच्चाई होती है। मन की यह दशा विक्षिप्तता कहलाती है।


नए लक्षण
अमेरिकी सरकार के शीर्ष मेडिकल संस्थान सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने कोरोना के नए लक्षणों में स्वाद और गंध महसूस न होने को भी शामिल किया है। वहीं, पिछले दिनों यह भी देखा गया है कि कोरोना से संक्रमित कई मरीज बोलते-बोलते अपनी सुध खो गए। कोरोना के कारण दिमाग में खून के थक्के जमने की भी शिकायत सामने आ चुकी है।


तनाव भी हो सकता है कारण
इस शोध टीम का हिस्सा रहे लॉ-ट्रोब यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता प्रो. रिचर्ड ग्रे का कहना है कि संक्रमित मरीजों के अंदर बढ़ता तनाव भी इसका एक कारण हो सकता है। स्ट्रेस के कारण ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। साइकोसिस का पहला असर हाइपर टेंशन यानी अत्यधिक तनाव के रूप में भी दिखता है। प्रो. रिचर्ड के मुताबिक, कोरोना के ऐसे मरीजों को अलग रखने के साथ सोशल डिस्टेंसिंग की भी जरूरत है।


चुनौती से कम नहीं मरीजों का इलाज करना
प्रो. रिचर्ड ग्रे का कहना है कि ऐसी स्थिति में संक्रमित मरीज का इलाज करना चुनौतीपूर्ण होता है। कोरोना संक्रमित  मरीजों में तनाव और बेचैनी को नियंत्रित करना बहुत जरूरी होता है। लेकिन साइकोसिस में स्थिति गंभीर हो सकती है, क्योंकि लगातार सोचने और डरने से मरीज का दिमाग प्रभावित हो रहा होता है।


एंटी-साइकोटिक दवा का डोज 
शोधकर्ताओं में शामिल डॉ. एली ब्राउन के मुताबिक, रिसर्च में देखा गया है कि ऐसे मरीजों को एंटी-साइकोटिक दवा का लो डोज देकर इलाज किया जा सकता है। मरीज और डॉक्टर के बीच बेहतर संवाद होना दवा के डोज से भी ज्यादा जरूरी है, ताकि मरीजों को ठीक से समझाया जा सके। मरीजों के उत्तेजित होने की स्थिति में मनोरोग विशेषज्ञ की मदद ली जा सकती है। हालांकि इस तरह के लक्षण वाले मरीजों की संख्या बहुत ही कम है।