राष्ट्रपति द्वारा 'पद्म भूषण' से सम्मानित होते नांबी नारायणन
वैज्ञानिकों को किसी भी देश के विकास में अहम भागीदार माना जाता है। उनकी खोजें देश के साथ-साथ दुनिया को भी एक नई दिशा देती हैं। आज हम आपको भारत के एक ऐसे वैज्ञानिक के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जन्मदाता माने जाने वाले वैज्ञानिकों, जैसे विक्रम साराभाई (इसरो के संस्थापक और पहले अध्यक्ष), सतीश धवन और भारत के राष्ट्रपति रहे एपीजे अब्दुल कलाम के साथ काम किया, लेकिन बाद में उसे देश का 'गद्दार' माना गया। हालांकि चार साल के बाद उस वैज्ञानिक को न्याय मिला और उसके ऊपर लगाए गए सभी आरोपों से उसे बरी कर दिया गया।
हम बात कर रहे हैं नांबी नारायणन की, जिन्हें पिछले साल ही भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया है। 12 दिसंबर 1941 को तमिलनाडु में जन्मे नांबी बचपन से ही पढ़ने-लिखने में काफी तेज थे। इंजीनियरिंग करने के बाद ही वह इसरो से जुड़ गए थे। हालांकि साल 1969 में वह रॉकेट से जुड़ी तकनीक का अध्ययन करने के लिए अमेरिका की प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी चले गए। इसके एक साल के बाद वह फिर भारत लौटे और इसरो में काम करने लगे।
साल 1994 में नांबी नारायणन की जिंदगी में उस वक्त सबसे बड़ा भूचाल आया, जब उन्हें जासूसी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। उनपर क्राइजेनिक इंजन से जुड़े खुफिया दस्तावेज मालदीव के दो खुफिया अधिकारियों को बेचने का आरोप लगाया गया था। उनके खिलाफ भारत के सरकारी गोपनीय कानून के उल्लंघन और भ्रष्टाचार समेत अन्य कई मामले दर्ज किए गए। इसके बाद उन्हें देश का 'गद्दार' माना जाने लगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जांच करने वाले अधिकारी नांबी को पूछताछ के दौरान काफी टॉर्चर करते थे। उन्हें पीटते थे और पीटने के बाद एक बिस्तर से बांध दिया करते थे। उन्हें कई-कई घंटों तक बैठने नहीं दिया जाता था। हालांकि इस दौरान नांबी अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को झूठा और खुद को बेकसूर बताते रहे, लेकिन पुलिस मानने को तैयार ही नहीं थी।
नांबी नारायणन को 48 दिन जेल में भी गुजारने पड़े थे। कहते हैं कि इस दौरान जब भी उन्हें अदालत में सुनवाई के लिए ले जाता था, वहां मौजूद भीड़ चिल्ला-चिल्लाकर उन्हें 'गद्दार' और 'जासूस' बुलाती थी। हालांकि बाद में सीबीआई ने इस मामले की जांच की और साल 1996 में उन्हें क्लीन चिट दे दी और मामले को बंद कर दिया, लेकिन इसके बावजूद केरल सरकार एक बार फिर मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गई। हालांकि साल 1998 में अदालत ने सरकार की अपील ठुकरा दी और उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया।
नांबी नारायणन ने बाद में केरल सरकार पर उन्हें गलत तरीके से फंसाने को लेकर मुकदमा कर दिया, जिसके बाद साल 2001 में अदालत ने केरल सरकार को नारायणन को मुआवजा देने का आदेश दिया। मुआवजे के तौर पर उन्हें 50 लाख रुपये दिए गए। हालांकि केरल सरकार का कहना है कि वो गैरकानूनी तरीके से नांबी नारायणन की गिरफ्तारी और उनके उत्पीड़न के मुआवजे के तौर पर उन्हें एक करोड़ 30 लाख रुपये और देगी।
नांबी नारायणन फिलहाल 78 साल के हैं, लेकिन यह आज भी एक रहस्य ही बना हुआ है कि उन्हें और पांच अन्य लोगों के खिलाफ इस तरह की साजिश क्यों रची गई थी, उन्हें क्यों फंसाया गया था। हालांकि बीबीसी के मुताबिक, नारायणन को शक है कि शायद यह साजिश किसी प्रतिद्वंद्वी अंतरिक्ष शक्ति ने रचा होगा ताकि भारत की रॉकेट तकनीक को विकसित होने से रोका जा सके।