कांग्रेस से भाजपा नेता बने बागी विधायकों का पार्टी में सम्मान बनाए रखना, ज्योतिरादित्य सिंधिया की बड़ी चुनौती।


ज्योतिरादित्य सिंधिया,शिवराज सिंह चौहान


सिंधिया के साथ गए नेता लौट आए हैं कांग्रेस में
सिंधिया के कांग्रेस में विरोधी भी भाजपा से लौटे पैतृक पार्टी में
भाजपा के नेताओं का कहना है कि उनका लक्ष्य उपचुनाव की 24 सीटें जीतना है


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र तोमर भाजपा नेता होने के नाते ज्योतिरादित्य सिंधिया को यथोचित सम्मान देते हैं।


भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती उपचुनाव की 24 में से कम से कम 16 सीटें जीतने की है। भाजपा उपाध्यक्ष कैलाश कैलाश विजयवर्गीय तो 24 सीट जीतने का लक्ष्य रखकर चल रहे हैं।
भाजपा की बड़ी चुनौती 24 सीट जीतकर मध्य प्रदेश में झंडा बुलंद करना है


कैलाश विजयावर्गीय के 24 सीट जीतने के लक्ष्य से भाजपा के सभी नेता इत्तेफाक रखते हैं। इनमें से 22 वह सीटें हैं, जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए विधायकों से खाली हुई है।


एक सीट भाजपा और एक सीट कांग्रेस के विधायक के निधन से खाली हुई हैं। कांग्रेस के नेता कहते हैं कि 22 में से 12-14 विधायक ज्योतिरादित्य के समर्थकों में हैं।


पार्टी छोड़ने वाले 4-5 विधायक मंत्री बनने की लालच में गए हैं
दो-तीन विधायक किसी आश्वासन पर गए हैं। इस तरह से ग्वालियर चंबल संभाग की 16 सीटों में से सभी सिंधिया के करीबी विधायक नहीं हैं।


कांग्रेस और मध्य प्रदेश भाजपा के नेताओं का कहना है कि इन 16 सीटों को जीतने वाले विधायक उपचुनाव में दोबारा टिकट पाने पर सभी विधायक बनने की क्षमता नहीं रखते।



केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर हों या शिवराज सिंह चौहान की टीम। मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा हों या भाजपा के एक पूर्व राज्यसभा सांसद और यहां तक मध्यप्रदेश के अध्यक्ष वीडी शर्मा के एक करीबी, सभी का मानना है कि सभी 22 विधायकों के उपचुनाव जीत जाने की गारंटी कैसे की जा सकती।


उपचुनाव में विधायकों के टिकट के सवाल पर मध्य प्रदेश भाजपा के नेता कहते हैं इसका फैसला पार्टी नेतृत्व करेगा।


पीएम मोदी और गृहमंत्री शाह कभी गलत दांव नहीं लगाते
प्रधानमंत्री मोदी और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राजनीति का नया अध्याय लिखा है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा कुशलता के साथ इसे आगे बढ़ा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी और पूर्व भजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हमेशा जमीनी तैयारी, चुनाव जीतने की क्षमता रखने वाले उम्मीदवार और भाजपा तथा संगठन के हित में फैसला लिया है।


दबाव के आगे नहीं झुके हैं। इतना ही नहीं पार्टी नेताओं, कार्यकर्ताओं का उत्साह बनाए रखने पर विशेष ध्यान दिया है। इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो भाजपा के सामने तीन बड़ी चुनौती है।


पहली चुनौती, कम से कम उपचुनाव की 16 सीटें जीतकर मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान बचाना।


दूसरी चुनौती, राज्य सरकार का दीन-ईमान बनाए रखकर सही ढंग से मंत्रिमंडल के विस्तार को आगे बढ़ाना, ताकि भाजपा के युवा और वरिष्ठ नेताओं में पार्टी को लेकर द्वंद की स्थिति न खड़ी हो।


तीसरी बड़ी चुनौती, कांग्रेस से भाजपा नेता बने ज्योतिरादित्य सिंधिया और बागी विधायकों से किए वादे को पूरा कर उनका पार्टी में सम्मान बनाए रखना।


समझा जा रहा है कि पार्टी पहली दो चुनौती से कोई समझौता नहीं कर सकती।


तीसरी चुनौती से कुछ हद तक समझौता करके उनके सम्मान को समायोजन के जरिए बनाए रखने का प्रस्ताव दे सकती है।


इसलिए माना जा रहा है कि भाजपा इसी रणनीति के तहत दांव लगाएगी।


ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए अच्छे संकेत नहीं
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 19 जून को होने वाले राज्यसभा चुनाव के लिए पहली प्राथमिकता की सीट से नामांकन कर दिया है। वह राज्यसभा सदस्य तो बन जाएंगे। आगे जो होगा, वह समय बताएगा, लेकिन पार्टी नेताओं से चर्चा के बाद निकलकर आ रहे निष्कर्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं।


शिवराज सिंह चौहान ने मार्च में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। पांच मंत्रियों का मंत्रिमंडल गठित होने में करीब एक महीना लग गया। इसमें सिंधिया समर्थक दो मंत्री जगह भी पा गए।


सिंधिया से थोड़ा दूर का रिश्ता रखने वाले नरोत्तम मिश्रा मंत्री ही नहीं बने बल्कि अहम विभाग मिल गया। उसके बाद से शिवराज सिंह चौहान का मंत्रिमंडल विस्तार पर चर्चा के लिए तीन बार अनौपचारिक रूप से तय कार्यक्रम टल गया।


बताते हैं इसके पीछे बड़ी वजह ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरफ से समर्थकों को मंत्री बनाने का दबाव, शिवराज की तरफ से अपने करीबियों को मंत्री बनाने का प्रयास, भाजपा के अन्य युवा, वरिष्ठ नेताओं की मंत्री पद पाने की कोशिश और सिंधिया विरोधी भाजपा के नेताओं की नाराजगी है।


भाजपा इस मामले में फूंक-फूंककर कदम रख रही है।


ज्योतिरादित्य सिंधिया का टैक्टिकल मूव
ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबियों ने 24 सीटों के उपचुनाव को सिंधिया के मान-सम्मान से जोड़ दिया है। कांग्रेस इसे अपने साथ धोखा, गद्दारी से जोड़ रही है। ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए अपना मान-सम्मान अधिक से अधिक बागी विधायकों को टिकट दिलवाने, उन्हें मंत्री बनवाने, महत्वपूर्ण विभाग दिलवाने और खुद के लिए भी केंद्र सरकार में मंत्री के तौर पर अच्छा विभाग पाने से जुड़ा है।


सिंधिया को जिस तरह से शिवराज के संक्षिप्त मंत्रिमंडल के गठन में मशक्कत करनी पड़ी, उन्हें लग रहा है कि सब कुछ बहुत आसान नहीं है। इसलिए इसे सिंधिया का संदेश देने का टैक्टिकल मूव माना जा रहा है। इसी तरह से उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ने से कुछ महीने पहले भी संदेश दिया था।



कांग्रेस में शामिल हुए बालेंदु शुक्ला


दूसरे, प्रेमचंद गुड्डू जनाधार वाले नेता हैं। ज्योतिरादित्य के कारण कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए थे। ज्योतिरादित्य के भाजपा में जाने के बाद पैतृक पार्टी में लौट आए हैं। बालेंदु शुक्ला को ज्योतिरादित्य चाचा कहते थे।


शुक्ला जी ज्योतिरादित्य के पिता माधव राव सिंधिया के बेहद निकटवर्तियों में रहे हैं। बाद में ज्योतिरादित्य से संबंध थोड़ा तल्ख हो गए थे। अब कांग्रेस में लौट आए हैं।


राकेश चतुर्वेदी भी कांग्रेसी हो गए हैं। सिंधिया के लिए इस तरह से नेताओं का भाजपा के साथ जाना भी अच्छा नहीं माना जाएगा।