घटती आबादी से परेशान पारसी समुदाय चला IVF की गली, इस योजना ने बदल दी जिंदगी


सरकार की ओर से आईवीएफ, फर्टिलिटी ट्रीटमेंट, रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी और काउंसलिंग जैसे मेडिकल जरूरतों के लिए मदद दिए जाने के बाद समुदाय के बीच सकारात्मक बदलाव आए हैं.


पारसी समुदाय में साल 2014 से अब तक 230 आंगनों में किलकारियां गुंजाने के बाद जियो पारसी योजना से जुड़े लोग खुश हैं. केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय की इस योजना से पारसी दंपत्तियों को फायदा पहुंचने की अच्छी शुरुआत हुई है. साल 2011 की जनगणना में पारसी समुदाय की घटती आबादी के गंभीर हालात को देखने के बाद साल 2013-14 में इस योजना की शुरुआत की गई थी.


साल 2011 की जनगणना में सामने आया था कि देश में पारसी आबादी 57, 264 है. आजादी से पहले साल 1941 की जनगणना में यह संख्या 1,14,000 थी. आबादी में खतरनाक स्तर की कमी देखने के बाद केंद्र सरकार ने यह योजना बनाई थी. इस योजना के तहत पारसी दंपत्तियों को बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने और इनसे जुड़े इलाज के लिए मेडिकल रिंबर्समेंट देने जैसी सुविधाएं दी जाती हैं.


जियो पारसी योजना का लाभ लेने के लिए आगे आए पारसी दंपत्तियों ने यह भी तय किया है कि अब वह दो बच्चे की नीति पर आगे बढ़ेंगे. पहले ज्यादातर पारसी दंपत्ति काफी उम्रदराज होते थे, निःसंतान रहते थे या उनमें से कुछेक ही संतान का सुख ले पाते थे. सरकार की ओर से आईवीएफ, फर्टिलिटी ट्रीटमेंट, रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी और काउंसलिंग जैसे मेडिकल जरूरतों के लिए मदद दिए जाने के बाद समुदाय के बीच सकारात्मक बदलाव आए हैं. अब पहले के मुकाबले ज्यादा बड़ी संख्या में नौजवान दंपत्ति सामने आए हैं.


इस योजना की शुरुआत में सरकार के लक्ष्य को पूरा करने में पहले दिक्कत आने के दो-तीन बड़े कारण थे. पहला यह कि बच्चे पैदा करने वाली लड़कियां भी होनी चाहिए. फिर जिनके बच्चे हैं, उन्हें दूसरा बच्चा पैदा करने की इच्छा भी होनी चाहिए. पारसी समुदाय में इससे पहले आईवीएफ ( परखनली शिशु) को कलंकित समझा जाता रहा है.


मुंबई की रहने वाले दंपत्ति करमीन और आजाद गांधी की कहानी बदलती मानसिकता की बेहतरीन मिसाल है. इस साल क्रिसमस के मौके पर वे अपने दूसरे बच्चे रयान के साथ खुश थे. तीन महीने के रयान से पहले दो साल की जायशा भी उनके घर में खुशियां बढ़ा रही है. गांधी दंपत्ति की गोद में दोनों ही बच्चे जियो पारसी योजना की आर्थिक मदद से आए हैं.


सदियों पहले ईरान से आए ज़रथुस्‍त्र परंपरा को मानने वाले पारसी शरणार्थी भारत के गुजरात में आकर बस गए थे. बाद में इनकी ज्यादातर आबादी मुंबई में आकर रहने लगी. साल 2011 की जनगणना के अनुसार इस समुदाय की आबादी 57, 264 है. इस समुदाय में हर साल करीब 800 मौतें होती हैं जबकि बच्चे हर साल केवल 200 पैदा होते हैं. अब बच्चों के पैदा होने की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है. पारसी समुदाय का देश की तरक्की में अहम योगदान है. कई महान उद्योगपति, न्यायाविद, वैज्ञानिक, क्रिकेटर और फिल्म के क्षेत्र में कई नामचीन शख्सियत इस मुदाय से आते हैं.


जियो पारसी योजना के तहत नौजवान दंपत्ति बुजुर्गो की देखभाल भी करते हैं. सरकार इसके लिए भी आर्थिक मदद करती है. सरकार बुजुर्ग दंपत्तियों को बच्चे की देखभाल के लिए 10 साल तक हर महीने तीन हजार रुपये की मदद करती है. वहीं 60 साल से बड़े पारसी लोगों को चार हजार रुपये हर महीने देती है.