कोरोना वायरस के लिए इस दवा का ट्रायल दूसरे चरण में, सफलता मिली तो 10 दिन में होगा इलाज


 पौधे से उत्पन्न औषधि एक्यूसीएच के आधार पर शोध


कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच दुनियाभर के देशों को इसकी वैक्सीन का इंतजार है, तो वहीं दूसरी ओर इसकी दवा को लेकर भी भारत समेत विभिन्न देशों की कंपनिया रिसर्च कर रही हैं। दवा बनाने वाली कंपनी सन फार्मास्युटिकल्स इंडस्ट्रीज इन्हीं में से एक है। यह कंपनी पौधे से उत्पन्न औषधि एक्यूसीएच के आधार पर एक दवा तैयार कर रही है, जिसमें कोरोना के इलाज की संभावना देखी जा रही है। कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए उम्मीद दिखाने वाली इस दवा का क्लिनिकल ट्रायल दूसरे चरण में है। कंपनी ने शुक्रवार को एक बयान में यह बात कही है। 


दवा बनाने वाली कंपनी सन फार्मास्युटिकल्स इंडस्ट्रीज ने शुक्रवार को कहा कि उसने कोविड-19 मरीजों के संभावित इलाज के लिए पौधे से उत्पन्न औषधि एक्यूसीएच के असर का पता लगाने को लेकर दूसरे चरण का क्लिनिकल परीक्षण शुरू कर दिया है।


सन फार्मा ने एक बयान में कहा कि कंपनी को देश की शीर्ष दवा नियामक खाद्य एवं औषधि महानियंत्रक(FDA) से बीते अप्रैल में पौधै से प्राप्त औषधीय गुण वाले पदार्थ से तैयार दवा के परीक्षण की अनुमति मिली थी, जिसका ट्रायल चल रहा है। 


कंपनी ने कहा कि देश के 12 केंद्रों पर 210 मरीजों के बीच इस दवा का क्लिनिकल ट्रायल किया जाएगा। इसमें मरीजों के लिए इलाज अवधि 10 दिन होगी। क्लिनिकल परीक्षण का परिणाम अक्तूबर तक आने की उम्मीद है।


कंपनी के अनुसार एक्यूसीएच का विकास डेंगू के लिए किया जा रहा है। नियंत्रित वातावरण में जीवों पर किए गए अध्ययन के दौरान इसमें विषाणु निरोधक प्रभाव पाए गए हैं। इसलिए इस दवा का परीक्षण कोविड-19 के इलाज के विकल्प के रूप में किया जा रहा है।


सन फार्मा ने कहा कि एक्यूसीएच का मानव शरीर पर सुरक्षा अध्ययन पूरा हो गया और इस औषधि को दूसरे चरण के परीक्षण के लिए सुरक्षित पाया गया है। अगर यह दवा क्लिनिकल ट्रायल में सफल होती चली जाती है, तो कोविड 19 के खिलाफ जारी जंग में यह बड़ा हथियार साबित होगी। 


मालूम हो कि अभी कुछ दिन पहले कोरोना का इलाज ढूंढने की ही कड़ी में स्पेन के शोधकर्ताओं ने छह हजार से ज्यादा दवाओं का विश्लेषण किया। इस कोविड मूनशॉट रिसर्च प्रोग्राम के तहत शोधकर्ताओं ने दो ऐसे दवाओं की पहचान की है, जो इलाज में मददगार होगी। इन दवाओं के नाम हैं- कारप्रोफेन और सेलेकॉग्सिब।


इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मॉलीक्युलर साइंसेज में प्रकाशित शोध के मुताबिक कारप्रोफेन और सेलेकॉग्सिब एंटी-इंफ्लेमेट्री ड्रग हैं, जिनमें से एक का इस्तेमाल इंसानों और दूसरे का इस्तेमाल जानवरों के लिए किया जाता है। शोधकर्ताओं का दावा है कि ये दोनों दवा कोरोना के उस एंजाइम पर लगाम लगाएंगी, जिसके जरिए वायरस अपनी संख्या को बढ़ाता है।


कुछ अन्य देशों में भी ऐसे ट्रायल चल रहे हैं, जिनका उद्देश्य कोरोना वायरस के लिए मददगार इसी एम-प्रो एंजाइम पर रोक लगाना है। इसके लिए एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग लेपिनोविर और रिटोनाविर के प्रयोग की बात भी जगजाहिर है, जिन्हें एचआईवी के इलाज के लिए बनाया गया था। मालूम हो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन भी ट्रायल में मदद कर रहा है।